प्यार तो मैंने किया तुमसेपर मैं तुम्हारा प्यार ना पा सकाभरोसा तुमपर किया मैंनेपर तुम्हारा भरोसा ना पा सका तू ना मेरी बन सकी कभीना मुझे कभी अपना बना सकीना था छल, कपट हमारे बीचपर ना पनपा कभी विश्वास भी आज तू चली फेर कर आँखेंछोड़कर मेरी ये दुनियाअकेले ही अब चलना है मुझेअकेले ही …
मेरी कविता की पक्तियांकरती हैं जीवन वर्णनसार है इनमें जीवन काये हैं मेरे जीवन का अभिन्न अंगइनसे कैसे में दूर रहूँकैसे तोडूं में इनसे नाताजब जी भर आता है मेरातब साथ इन्ही का मिलताना मुझ बिन ये हैं इस जग मेंना बिन इनके मेरा कोई अस्तित्वछोड़ चाहे में जग दूं कभीये रहेंगी जग में बनकर …
मयंक ने शायद 1999 में ये कविता मुझे सुनाई थी| आज कुछ पुराने पन्नों से वो सामने आई तो सोचा मयंक की कविताओं के इस समूह में उसे भी जोड़ दूं – कविता तुम पर क्या कविता लिखूँकि तुम खुद प्राकृतिक कविता होतुम्हारी सादगी और शालीनता नेतुम्हारे सौंदर्य को और भी निखारा है|| उस पल …
मानव के कोतुहल का कोलाहलनष्ट कर रहा आज धरा धरोहर कोदानव शक्ति में झूम रहा है वो आजकर रहा अशांति का तांडव नृत्य देवों की इस भूमि पर दास बना वो दानव काअपने ही हाथों से काल ग्रास बना रहा बांधवों कोभूल कर प्रकृति की प्राथमिकता कोभूल रहा है धरा पर संस्कृति की धारा को …
अभी अभी कुछ पंक्तियाँ पढ़ी जिसमें हीर रांझे से बोलती है कि सब छोड़ मेरे पास आजा| वे पंक्तियाँ पढ़ कर मष्तिस्क में उन्माद हुआ और कुछ पंक्तियाँ कुछ इस प्रकार बनी – ना बिन तेरे जग मेरा हीरिये, ना बिन तेरे ये जीवन छोड़ के सब में आयूँ दर तेरे, ना बिन तेरे मुझे …
हरियाली की चादर ओढ़ेमहक रही है वसुंधराबादलों का वर्ण ओढ़ेथीरक रहा अम्बर भी नदियों में बहता पानीमानो गा रहा हो जीवन संगीतपांखियों के परों को देखमानो नृत्य कर रही अप्सराएं खेतों में लहलहाती उपजफैला रही सर्व खुशहालीसुंदरता की प्रतिमूर्ति बनप्रकृति कर रही अठखेलियाँ कितना स्वर्णिम है ये जगतजिसमें रहता मानस वर्गक्यों आज व्यस्त है वोनष्ट …
जीवन नवरस को गूंथ कविता का एक प्रयास – रणक्षेत्र में जा वीर बना मैं देखा द्वेष का रूप वीभत्समौत का देख रोद्र तांडवपीड़ा से हुआ ह्रदय करुणहास्य से होकर विमुखभक्ति का अपनाया रुखअदभुत अनुभूति हुई तबश्रृंगार से मिला वात्सल्य सुख जब
कैसा ये मायाजाल है, है कैसा ये बंधनया है ये तेरे प्रेमजाल का ही सम्मोहनहै ये कोई दिवास्वप्न या मेरा ही भरम तेरे आगे क्यों छोटा लगता है हर करम||_______________________________ निद्रागोश में स्वप्न में तू दिखती हैहर समय कानो में तेरी वाणी बसती हैना चाह भी तेरे प्रेमजाल में बिंध जाता हूँतेरे नैनो के प्रेम …
देश का मैं हूँ एक नौजवानरहता हूँ सदैव सावधान चैन से तुम घर अपने सो सकोइसकर देता हूँ मैं बलिदान ना देना मुझे तुम कोई सम्मानना देना मेरी चिता पर कोई ज्ञानपरिजन मेरे ना पीड़ित हों कभीबस देना तुम इतना सा ध्यान मैं तो चला जाऊँगा एक दिनमेरा अंत तो निश्चित हैपर मेरा परिवार हो …
काहे करात तू मोसे प्रतिक्षाकाहे लेत तू धैर्य परीक्षा काहे छीने जियरा का चैनाकाहे बितात है प्रेम की रैनाना कर तू मेरे जीवन से खेलाना बना तू इसे दुखों का मेलाहाथ पकड़ जो साथ चले मोरेजीवन भर साथ रहूँ मैं तोरे