Poem – Hindi

व्याकुल मन

भोर भई सूरज उंगने को हैपर ये व्यथा कैसी ह्रदय में हैनींद नहीं आँखों मेंचंचल चित भी चिंतित है कोई तो पीड़ा है इसेव्यक्त नहीं करता उसेनिद्रगोश में जाने सेक्यों व्यर्थ व्याकुल है मनन चिंतन भी अब व्यर्थ हैकठिन अब दिवस व्यापन हैघनघोर पश्चाताप को व्याकुलनिराधार ये पागल है ना समझ है ये ना सुनता …

राहगीर तू चला चल

समय के साथ राहगीर तू चलाचलअडचने बहुत आएंगी जीवन मेंलेकिन तू थाम अपनी दांडीराह पर चला चल बस चला चल विजय होगी जो तेरी, तेरी ही है हारहवा के झोंके सा बस पतझड़ का लगा अम्बारजीवन है एक कठिन परीक्षा का नामलेकिन तू बस चला चल बस चला चल

मुलाक़ात

सोचा ना था इस कदर यूँ मुलाक़ात होगीतेरी यादों में यूँ तन्हा शाम-ओ-सहर होगीइन्तेज़ार में हाल-ऐ-दिल का क्या गिला करेंइन्तेहाँ है कि बेसब्र दिल अब भी तेरा नाम लेयादों में तेरी यूँ शाम-ओ-सहर ग़मगीन हैकि तन्हा हम ना कभी ग़मों के साए से हुएयादों में तेरी जो दर्द-ऐ-मुरव्वत से रूबरू हुएसर्द हवा का झोका जो …

अभिलाषा

का कहूँ छवि तिहारी,  जित देखूं उत् दीखेई जो मैं सोचूं नैना बंद करके,  मन वर जोत जले निद्रागोश में, स्वप्न में भी,चहुँ और जो दीप जलेना दिन में चेइना न रात में चेइनाबस चहुँ और तू ही तू दीखेईबस कर नखरा और न कर ठिठोलीआ बना मेरे अंगना कि तू रंगोलीभर तू रंग मेरे …

जीवन बरखा

क्यूँ करते हो ये शिकवाकि थोडा और बरस लेने दोजीवन की प्यास बुझने दोमझधार में ना यूँ कश्ती छोडोकि किनारे तक मुझे खेने दोडूबने का डर नहीं मुझेना ही जीने की है तमन्नासोचता हूँ गर कभीतो देखता हूँ तेरा ही सपना

अश्रुमाला

अश्रु जो बहे मेरी आँखों सेकह गए मेरे ह्रदय की गाथाजिस पथ चले वो पी कर हाला पिरो गए मेरी व्यथा की मालासंजों कर रख सके इसेनहीं मिला जग में कोईअश्रु जो बहे मेरी आँखों सेकह गए मेरे ह्रदय कि गाथाना तू मेरी ना ये जग मेरायही मेरे जीवन का फेराशुन्य बन गया ये जीवन …

अश्रुधारा

जब ह्रदय में हो पीड़ाजब मन में हो घृणादिखे  हर और जब अंधियाराबहती है नैनों से अश्रुधारा नहीं हो काबू जब क्रोध परकठिन लगे जब राह हरकठोर हो अपने जैसे है धराबहती है नैनो से अश्रुधारा विचारों का हो जब अतिक्रमणकरे जब मष्तिष्क अत्यधिक भ्रमणना दिखे जीवन में कोई और चाराबहती है नैनो से अश्रुधारा …

घरोंदा

रे मनवा न सुन तू इस जग कीबना घरोंदा बुन इन तिनको कोनहीं व्यर्थ होगा परिश्रम तेरा नहीं कोई इसमें समय का फेरा प्रेम न तू अपने स्वप्न से करकि स्वप्न तो आते हैं अंधियारे मेंरे  मनवा बना घरोंदा तू तिनकों सेऔर पा फल तू अपने परिश्रम से भटक न होकर निराश हार सेकि पथरीला …

आँखों की ये भाषा

शब्दों के मर्म को समझो यही किताबों की भाषाआँखों के भाव को समझो यही उनकी अभिलाषाजानना किसीको नहीं है इतना कठीनचेहरा उनका सब बोलता है आँखों के अधीन लिखता नहीं मैं यूँ ही ये पंक्तियाँइनमें ही में भाव व्यक्त करताशब्दों को जो तुम पढते, समझो उनके मर्म कोआँखों में जो तुम देखते, समझो उनके कर्म …