Poem – Hindi

अंतर्मन की ज्वाला

अंतर्मन में बसी है जो ज्वाला ढूंढ रही है बस एक मुख इतने वर्षों जो पी है हाला बन रही है अनंत दुःख नागपाश नहीं कंठ पर ऐसी जो बाँध दे इस जीवन हाला को प्रज्वलित ह्रदय में है ज्वाला ऐसी बना दे जो हाला अमृत को ज्वाला जब आती है जिव्हा पर अंगारे ही …

जीवन द्वंद्व में लीन

जीवन द्वंद्व में लीन है मानव  ढूंढ रहा जग में स्वयं को  नहीं कोई ठोर इसका ना दिखाना  दूर है छोर, ढूंढने का है दिखावा  नहीं किसी को सुध है किसी की  अपने ही जीवन में व्यस्त है हर कोई  ढूंढ रहा है हर कोई स्वयं को  छवि से भी अपनी डरता है हर कोई  …

मर्यादा में जीना सीखो

आनंदन नहीं दिखता इनको जो अफ़ज़ल पर रोए हैं राम इनको काल्पनिक दिखता बाबर इनका महकाय है रामायण इनकी है कहानी मात्र  किंतु शूर्पणखा एक किरदार है महिसासुर इनको खुद्दार दिखता दुर्गा नाम से इनका क्या पर्याय है राष्ट्र विरोधी कथनो और नारों में  दिखती इन्हें अपनी स्वतंत्रता है वन्दे मातरम के उच्च स्वर में …

मात-पिता

नैनो की भाषा ना समझ पाए  ना समझ पाए उनके कुछ संकेत अधरों से वो कुछ बोल ना पाए हृदय को हमारे छू ना पाए बढ़े थे जिस डगर पर साथ उनके उसपर झुककर उन्हे संभाल ना पाए एक छोर तक साथ चले वो हमारे उसके आगे हम उन्हें थाम ना पाए कुछ भाषा ना …

करना है दंभ का संहार

शिव की प्रतिमा बन बैठा हूँ  आज हलाहल पीकर  भस्मासुर को मैं वर दे चुका  आज अपनी धुनि रमाकर  समय अब पुकार रहा मुझे  है पुकार धुनि तजने की  रच मोहिनी अवतार एक बार  करना है भस्मासुर पर वार  शिव की प्रतिमा बन बैठा हूँ  देकर भस्मासुर को मैं वर हलाहल भी पी चुका जीवन मैं  …

शिव से पूछो क्या है मुझमें

शिव से पूछो तुम क्या है मुझमें  क्यों आज शिव है मुझमें  हाला मैं क्या पी आया जग की  क्या बन बैठा हूँ शिव की प्रतिमा  तन्द्रा ना करो भंग मेरी तुम  ना करो मुझसे अब कोई छल  कि कब मैं शिव बन जाऊं  कि कब मुझमें बस जाए शिव  हाला मैं बहुत पी चुका  जीवन में  बहुत …

एक कवि की पीड़ा

जब कभी कविता की पंक्तियाँ पढ़ता हूँ  तो भाषा का अनुचित प्रयोग का ज्ञान होता है हिंदी में कही जाने वाली पंक्तियों में  अन्य भाषाओं के शब्दों का समावेश होता है ना जाने कहाँ विलीन हो गई है परिपक्वता अब तो काव्य की रचना मैं भी है अराजकता भावनात्मक विश्लेषण भी अब नहीं है होता …

हर हर हर महादेव

ॐ हर हर हर महादेवाए नमः  ॐ प्रभु अव्यग्राय नमः  हरि हर अव्यक्ताय नमः  ॐ हरि हरि हरि ॐ शिवाय नमः  तू आदि है तू ही अंत है  तू ही मूरत तू ही लिंग है  तुझसे ही जग हैतुझमें ही जग है विनाशक है तू रचयिता भी तूमानव के मश्तिष्क सेदानव के अंतर्मन मेंबसा है …

विमुद्रीकरण पर सिकी राजनीति की रोटी

विमुद्रीकरण किस प्रकार चिंता जनक है  कि विमुद्रीकरण की कतार में हुई मृत्यु  एक राजनितिक पहलू बन जाता है  बिना किसी पुष्टिकरण है  पत्राचार का एक बन जाता है  इन बुद्धिजीविओं से विनती है  यदि तुम चाहते हो ऐसे ही विषय  तो जरा ध्यान लगाना दक्षिण में  कुछ वहां भी सिधार गए है  अम्मा के …

कैसे करे अब स्वयं को चैतन्य

आज की समय में कौन अपना है कौन परायाकैसे पहचान करें किसमे राम किसमे रावण समायाकैसे स्वयं को कोई चैतन्य करेजब भगवान का मोल भी यहाँ पैसों में धरेनहीं मिलता बिन माया के कुछ संसार मेंबिन माया अपने भी दिखाते हैं बेग़ानो मेंकैसे करे अब स्वयं को हम चैतन्यकि अब रहते हैं रिश्तों की क़ब्र …