यदि कहीं ज्ञान बँट रहा है तो तू ज्ञान बंटोर ले यदि कोई ज्ञान बिखेर रहा है तो तू ज्ञान बंटोर ले ज्ञानवर्धन कोई क्रीड़ा नहीं वर्षों की तपस्या है ज्ञान से तू समृद्ध होगा ज्ञान से तू बलवान होगा ज्ञान का कोई प्रदर्शन नहीं होता कहीं बंटता है तो कोई पाता है ज्ञान कभी ख़त्म नहीं होता खोता नहीं …
वीरगति को प्राप्त कर गएपरायण कर गए संसार सेदेखो उनकी माता रोती हैपलकों में लहू के अश्रु लिएअच्छे दिन को तुम तकते होउनकी वीरगति के सहानुभूति मेंयदि अच्छे दिन मोदी लाएगातो परिभाषित करो अच्छे दिन कोलहू शास्त्रों का तब भी बहा थाजब रामराज्य था सतयुग मेंअब तुम कलजुग में जीते होकिसी की मृत्यु में अच्छे …
रक्त की आज फिर बानी है धारा फिर रहा मानव मारा मारा हीन भावना से ग्रसित अहंकारी फैला रहा घृणा की महामारी वर्षो बीत गए उसको समझाते हाथ जोड़ जोड़ उसे मनाते फिर भी ना सीखा वो संभलना आता है उसे केवल फिसलना सन सैंतालीस में खाई मुँह की सन पैंसठ में भी दिखाई पीठ सन …
कहते इसे कहानी घर घर की हैं इसमें ना कोई अपना है ना पराया पाना हर कदम पर तुमको धोखा है यही बस इस कहानी का झरोखा है कोई किसी का नहीं है यहाँ सारे अपने आप से ही जूझ रहे किसी को नहीं है समय यहाँ सारे अपने ही ग़मों से लड़ रहे कहते …
परब्रह्म रुपम देवम प्रणाम है देव नित्यम रूप प्रखर धार कर वक्रतुंड लंबोदरम दान दे आज धरा को विघ्नकर्ता पाप का विनाश कर उथ्थान कर मानव का मानवता को प्रखर कर गणपति गणेश गजनरेश शिव महिमा का है लम्बोदर आज इस धरा पर प्रचार कर अपनी शक्ति से हे परब्रह्म तू मानवता को सद्बुद्धि दे ओम …
जय जय है माँ दुर्गे जय जय है जगदंबे तेरा ही आज मैं जप करूँ तेरी ही आज में आरती करूँ तज मोह आज संसार का मैं तेरी ही अब भक्ति करूँ जय जय है जगदंबे जय जय है मात भवानी अनुकंपा तेरी बस बनी रहे जीवन में तेरी शक्ति रहे सांसारिक मोह त्याग कर …
प्रखर प्रचण्ड त्रिनेत्र आज हे शिव तू अपना खोल दे पापमुक्त कर धरा को मनुष्य को तू तार दे बहुत हलाहल पी चुकी धरा आज तू अपना त्रिशूल धार ले हाला जीवन की बहुत पी चुका अब तू मानव को तार दे प्रखर प्रचण्ड त्रिनेत्र अपना हे शिव आज तू खोल दे अर्धमूर्छित इस धरा को आज …
कलम आज भीगी है अश्रुओं से पत्तों की तरह बिखरे हैं विचार अल्पविराम सा लग गया है जीवन में अर्धमूर्छित हो चला है मष्तिस्क ह्रदय में आज बसी है जीवनहाला जीवन भी भटक गया है हर राह अंधकारमय है हर ओर छा रहा अँधियारा कलम से आज निकल रही अश्रुमाला पी रहा आज मैं अपनी …
सूखा दरिया सूखा सागर ख़ाली आज मेरा गागर सूखे में समाया आज नगर हो गई सत्ता की चाहत उजागर बहता था पानी जिस दरिया में आज लहू से सींच रहा वो धरा को अम्बर से अंबु जो बहता था आज ताप से सेक रहा वो धारा को सूखा आज ममता का गागर सूखी हर शाख़ …
लहू तेरा बहा है आज लुट रही कहीं तेरी अपनी लाज नहीं किंतु तेरे लहू में वो रंग नहीं उस लुटती लाज के कोई संग कहीं दूर कोई धमाका हुआ किसी का बाप, भाई, बेटा हताहत हुआ छपा जैसे ही यह समाचार गरमा गया सत्ता का बाज़ार नहीं तेरे लहू से इनको कोई सरोकार …