Poem – Hindi

ज्ञान बंटोर ले

यदि कहीं ज्ञान बँट रहा है  तो तू ज्ञान बंटोर ले  यदि कोई ज्ञान बिखेर रहा है  तो तू ज्ञान बंटोर ले  ज्ञानवर्धन कोई क्रीड़ा नहीं  वर्षों की तपस्या है ज्ञान से तू समृद्ध होगा  ज्ञान से तू बलवान होगा  ज्ञान का कोई प्रदर्शन नहीं होता  कहीं बंटता है तो कोई पाता है  ज्ञान कभी ख़त्म नहीं होता खोता नहीं  …

मृत्यु पर राजनीति

वीरगति को प्राप्त कर गएपरायण कर गए संसार सेदेखो उनकी माता रोती हैपलकों में लहू के अश्रु लिएअच्छे दिन को तुम तकते होउनकी वीरगति के सहानुभूति मेंयदि अच्छे दिन मोदी लाएगातो परिभाषित करो अच्छे दिन कोलहू शास्त्रों का तब भी बहा थाजब रामराज्य था सतयुग मेंअब तुम कलजुग में जीते होकिसी की मृत्यु में अच्छे …

बहुत हो चुका परिहास

रक्त की आज फिर बानी है धारा  फिर रहा मानव मारा मारा  हीन भावना से ग्रसित अहंकारी  फैला रहा घृणा की महामारी  वर्षो बीत गए उसको समझाते  हाथ जोड़ जोड़ उसे मनाते  फिर भी ना सीखा वो संभलना  आता है उसे केवल फिसलना  सन सैंतालीस में खाई मुँह की  सन पैंसठ में भी दिखाई पीठ  सन …

कहानी हम जैसों की

कहते इसे कहानी घर घर की हैं  इसमें ना कोई अपना है ना पराया  पाना हर कदम पर तुमको धोखा है  यही बस इस कहानी का झरोखा है  कोई किसी का नहीं है यहाँ  सारे अपने आप से ही जूझ रहे  किसी को नहीं है समय यहाँ  सारे अपने ही ग़मों से लड़ रहे  कहते …

ओम नमो गणपतये नमः

परब्रह्म रुपम देवम  प्रणाम है देव नित्यम रूप प्रखर धार कर वक्रतुंड लंबोदरम दान दे आज धरा को विघ्नकर्ता पाप का विनाश कर उथ्थान कर मानव का मानवता को प्रखर कर गणपति गणेश गजनरेश  शिव महिमा का है लम्बोदर आज इस धरा पर प्रचार कर  अपनी शक्ति से हे परब्रह्म  तू मानवता को सद्बुद्धि दे  ओम …

जय जय है जगदंबे

जय जय है माँ दुर्गे  जय जय है जगदंबे तेरा ही आज मैं जप करूँ तेरी ही आज में आरती करूँ तज मोह आज संसार का मैं तेरी ही अब भक्ति करूँ जय जय है जगदंबे जय जय है मात भवानी अनुकंपा तेरी बस बनी रहे जीवन में तेरी शक्ति रहे सांसारिक मोह त्याग कर …

हे शिव

प्रखर प्रचण्ड त्रिनेत्र आज  हे शिव तू अपना खोल दे  पापमुक्त कर धरा को  मनुष्य को तू तार दे  बहुत हलाहल पी चुकी धरा  आज तू अपना त्रिशूल धार ले  हाला जीवन की बहुत पी चुका अब तू मानव को तार दे  प्रखर प्रचण्ड त्रिनेत्र अपना  हे शिव आज तू खोल दे  अर्धमूर्छित इस धरा को  आज …

अल्पविराम

कलम आज भीगी है अश्रुओं से पत्तों की तरह बिखरे हैं विचार  अल्पविराम सा लग गया है जीवन में  अर्धमूर्छित हो चला है मष्तिस्क  ह्रदय में आज बसी है जीवनहाला जीवन भी भटक गया है हर राह अंधकारमय है  हर ओर छा रहा अँधियारा  कलम से आज निकल रही अश्रुमाला पी रहा आज मैं अपनी …

सूखा आज हर दरिया

सूखा दरिया सूखा सागर ख़ाली आज मेरा गागर सूखे में समाया आज नगर हो गई सत्ता की चाहत उजागर बहता था पानी जिस दरिया में आज लहू से सींच रहा वो धरा को अम्बर से अंबु जो बहता था आज ताप से सेक रहा वो धारा को सूखा आज ममता का गागर सूखी हर शाख़ …

नहीं तेरे लहू में वो रंग

लहू तेरा बहा है आज  लुट रही कहीं तेरी अपनी लाज नहीं किंतु तेरे लहू में वो रंग नहीं उस लुटती लाज के कोई संग कहीं दूर कोई धमाका हुआ किसी का बाप, भाई, बेटा हताहत हुआ छपा जैसे ही यह समाचार गरमा गया सत्ता का बाज़ार   नहीं तेरे लहू से इनको कोई सरोकार …