Poem – Hindi

जय जय है जगदंबे

जय जय है माँ दुर्गे  जय जय है जगदंबे तेरा ही आज मैं जप करूँ तेरी ही आज में आरती करूँ तज मोह आज संसार का मैं तेरी ही अब भक्ति करूँ जय जय है जगदंबे जय जय है मात भवानी अनुकंपा तेरी बस बनी रहे जीवन में तेरी शक्ति रहे सांसारिक मोह त्याग कर …

हे शिव

प्रखर प्रचण्ड त्रिनेत्र आज  हे शिव तू अपना खोल दे  पापमुक्त कर धरा को  मनुष्य को तू तार दे  बहुत हलाहल पी चुकी धरा  आज तू अपना त्रिशूल धार ले  हाला जीवन की बहुत पी चुका अब तू मानव को तार दे  प्रखर प्रचण्ड त्रिनेत्र अपना  हे शिव आज तू खोल दे  अर्धमूर्छित इस धरा को  आज …

अल्पविराम

कलम आज भीगी है अश्रुओं से पत्तों की तरह बिखरे हैं विचार  अल्पविराम सा लग गया है जीवन में  अर्धमूर्छित हो चला है मष्तिस्क  ह्रदय में आज बसी है जीवनहाला जीवन भी भटक गया है हर राह अंधकारमय है  हर ओर छा रहा अँधियारा  कलम से आज निकल रही अश्रुमाला पी रहा आज मैं अपनी …

सूखा आज हर दरिया

सूखा दरिया सूखा सागर ख़ाली आज मेरा गागर सूखे में समाया आज नगर हो गई सत्ता की चाहत उजागर बहता था पानी जिस दरिया में आज लहू से सींच रहा वो धरा को अम्बर से अंबु जो बहता था आज ताप से सेक रहा वो धारा को सूखा आज ममता का गागर सूखी हर शाख़ …

नहीं तेरे लहू में वो रंग

लहू तेरा बहा है आज  लुट रही कहीं तेरी अपनी लाज नहीं किंतु तेरे लहू में वो रंग नहीं उस लुटती लाज के कोई संग कहीं दूर कोई धमाका हुआ किसी का बाप, भाई, बेटा हताहत हुआ छपा जैसे ही यह समाचार गरमा गया सत्ता का बाज़ार   नहीं तेरे लहू से इनको कोई सरोकार …

हृदयोदगार

चिंतन मनन की यह धरा थी आज इसपर भी मंथन कर दिया अनेकता में एकता की यह धरा थी आज उसको भी तुमने तोड़ दिया सागर मंथन से निकला विश पी शिव शम्भु ने जग को तारा था अब इस धरा मंथन का विश कौन शिव बन पी पाएगा उस युग में तांडव कर शिव …

बरसों से यही सब चल रहा है

यही सब चल रहा है बरसों से हो रहा सीताहरण सदियों से सभ्यता का कर रहे चीरहरण मना रहे शोक कर अपनो का मरण ना स्वयं अब जिवीत  हैं  ना जिवीत है इनमें मानवता विलास का करते है सम्भोग फैला रहे केवल दानवता यही सब चल रहा है बरसों से अम्ल बह रहा है नैनों …

क्या घर मेरा बन जाएगा शिवाला

विष से भरा है आज मेरा प्याला  जीवन मंथन की है यह हाला  कटु है आज हर एक निवाला  विष से भरा है आज मेरा प्याला  कैसा है यह द्वंद्व जीवन का हर पल है जैसे काल विषपान का  कैसा है यह पशोपेश मेरा  हर ओर दिखता मुझे विष का डेरा   ना मैं शिव हूँ ना है …

तार आज धरा को

हर हर महादेव जय शिव शम्भो बिगड़ी बना हर वर दे हमको जिस पाताल में आज है धरा जिस पाताल में है अथाह विश भरा उस पाताल से धरा को तू निकाल एक बार फिर आज बन तू त्रिकाल हर हर महादेव जय शिव शम्भो बन त्रिकाल पाप मुक्त कर तू धरा को उठा त्रिशूल …

ख़बरों को हम बेचते हैं

कुछ पंक्तियाँ भारत के पराधिन मानसिकता वाले भारत के अजनबी अंग्रेज़ी भाषा के साहित्यकारिक पत्रकारों के लिए!! छोड़ आए हम अपनी शर्मोहया करते है बस बदज़ुबानी बयाँ  देश की हमें परवाह नहीं वामपंथ के हैं हम राही करते हैं बस ख़ुदपर गुमान नहीं देशभक्ति का हमपर निशान चाहते हैं बस धन धन धन सुनते हैं …