Poem – Hindi

लहू के दो रंग

आज इस धरा पर लहू के दो रंग एक चढ़ गया मातृभूमि को नमन करते और एक हो गया श्वेत  मातृभूमि का करते हुए शील भंग वीर सपूत छाप रक्तिम छोड़ गया  चढ़ गया माँ के चरणो भेंट  श्वेत लहू धारक किंतु कर रहा लाल माँ की ही कोख लहू के दो रंग देखे मैंने …

अभ्यास

जितना भी तुम अभ्यास कर लोभारत नहीं तुम तोड़ पाओगेप्रलय की भी शक्ति जोड़ लोबाल बाँका नहीं कर पाओगे ईश्वर ने है यह सृष्टि रचिबनाया उसने यह भारत खंडकितना भी तुम प्रयास करलोरहेगा भारत सदैव अखंड वर्षों से हुए बहुत प्रयासकिया इसने सब आत्मसातजो भी आया यहां रह गया यहीं का बनकर जितना चाहे तुम …

वन्दे मातरम की हुंकार

प्रहर अंतिम है रात्रि का प्रहार अब हमें करना है एक क्षण के लिए भी अब अर्थ नहीं जानना चित्कार का यूद्ध का उदघोश हुआ है वीरों के बलिदान से करना है अब अंत इसका  आतंकियों की रक्तिम छाप से ब्रह्मा मुहूर्त का बिगुल बजेगा विजय के शंखनाद से वीरों का सम्मान होगा शत्रु की …

धरा के वीर

कहते नहीं जब थकते तुम ये बात कितनी स्याह होगी अब ये रात बिछाते हुए आतंकवाद की बिसात छुप क्यूँ जाते हो यूँ अकस्मात् किस अफ़ज़ल का तुम बदला लोगे भारत के क्या तुम टुकड़े करोगे हर अफ़ज़ल को एक पवन मारेगा किसी मक़बूल को ना महाजन छोड़ेगा कश्मीर का तुम स्वर बनते हो उसी …

कैसा है ये लोकतंत्र

कैसा है ये लोकतंत्र कैसा है ये जनतंत्र हैं एक मंच पर एकत्रित  भारत विरोधी मित्र स्वतंत्रता की अभिवक्ति का करते हैं दुरुपयोग उस शक्ति का करते हैं राष्ट्र विरोधी बातें कहते हैं काली होंगी और रातें करते हैं आपत्ति राष्ट्र ध्वज लहराने पर लज्जित होते हैं वन्दे मातरम् बोलने पर सर झुकाते हैं आतंकी …

ये रिश्ता हमारा

ये तेरा ये मेरा, ये रिश्ता हमारा कैसा है ये ईश्वर का खेला कि तू है मेरी जान  कैसे रहूँ मैं तेरे बिन-२ जीवन की राहों में साथ हो तेरा यही है सदैव विश्वास हमारा करते हैं ईश्वर से यही हम प्रार्थना कि संग तेरे ही जीवन है जीना – २ श्रिश्टी के रचियता की …

कान्हा – सुन मेरी पुकार

ना तेरी बांसुरी ना तेरा माखनआज मोहे दे दे तू अपना चक्रना है अब ये महाभारतना चाहिए मुझे अस्त्रों में महारत मत बन तू मेरा सारथीमत बना मुझे तू अर्जुनआज बन तू मेरा साथीकरने को नए जग का सृजन कलयुग के अन्धकार में आजडूब गया है मानवधर्मफ़ैल रहा अधर्म चहुँ औरनहीं दिखता मानवता का छोर …

कुछ दूर निकल आये हैं

कुछ दूर निकल आये हैं घर की खोज में  अकेले ही निकल आये हैं   एक नए घर की खोज में  साथ अब ढूंढते है तेरा घर की खोज में  एक था वो दिन जब रहते थे तेरी छाँव में  फिर दैत्यों ने किया दमन तेरी गोद में  लहू की नदियां बहाई, तेरी धरा पर  बहनो की …

कैसी ईश्वर की श्रिश्टी

साँझ पड़े बैठा नदिया किनारे सोच रहा मैं बैठ दरख्त के सहारे कितनी सरल कितनी मधुर है ये बेला है कौन सा ईश्वर का ये खेला संगीतमय है जैसी ये लहरों की अठखेलियाँ कितनी मद्धम है पंछियों की बोलियाँ कहीं दूर धरा चूमता गगन कौन से समय में लगाई ईश्वर ने इतनी लगन कितनी सुहानी …

नवरात्रों का त्यौहार

नवरात्रों का त्यौहार आया  माता का पर्व आया  घर घर अब बैठेगी चौकी  बारी है घट स्थापना की  चौक में पंडाल सजेगा  बीज शंख और ताल बजेगा  बजेंगे अब ढोल नगाड़े  खेलेंगे गरबा साँझ तले  माँ का आशीर्वाद निलेगा  यह सोच हर काज बनेगा  नव कार्यों की नीवं सखेंगे  हर किसी के सपने सजेंगे  नवरात्र …