Poem – Hindi

नेताओं का धर्म

आज के नेताओं का धर्म क्या है  किसकी वो करते हैं पूजा  कभी हुई ऐसी जिज्ञासा  कभी उठा है कोई ऐसा प्रश्न  गौर करोगे तो जानोगे उनकी जात  राजनितिक अभिलाषा है उनका धर्म  करते हैं वो सत्ता की पूजा  नहीं पैसे से बढ़कर उनके लिए कोई दूजा  कोई बड़ा नहीं कोई छोटा नहीं  उनके लिए सर्व …

सत्ता का लालच देखो

सत्ता का लालच देखो  देखो इनकी मंशा  नहीं किसी को छोड़ा इन्होने  भारत माँ तक को है डंसा  आरक्षण पर राजनीति खेल रहे  कर रहे देश के टुकड़े  जात पात में हमको बाँट रहे  कर रहे धर्म के टुकड़े  सूखे की राजनीति खेली  खेली इन्होने लहू की होली  दम्भ के ठहाकों के बीच  कर रहे …

वेदना विरह की

व्यथित आज मन है मेरा  व्यथित यही चित्त  व्यथा मस्तिस्क में रह रही  हलचल ये जीवन में मचा रही  कारक नहीं समझ में आया  किया चिंतन मनन बहुत  देवों की भी कि आराधना  “नहीं पता” है उनका भी कहना  चेष्टा थी कि तुमसे पूछूँ  संग बैठ तुम्हारे मैं सोचूं  किन्तु वृद्धि हुई पीड़ा में और भी  …

पिया मिलन

नैन ताके राह किस गुजरिया की  छोड़ मँझधार हुई मैं पिया की  नहीं मोहे अब बैर किसी से  नाहीं चाहूँ मैं देवोँ की डगरिया  पिया संग है मोहे अब जीना  पिया के लिए धड़के अब मोरा जियरा  रूठे देव तो रुठने दो उनको  मनाऊँगी उनको पिया माना है जिनको  कहे अब नैन ताके राह तिहारी  …

बिछड़ तोसे जिया नहीं जाए

बदरा छाए, नैनो में बदरा छाएआज पीह से मिलन की आस मेंनैनो में बदरा छाए, बदरा छाएआज फिर मिलन की आस में कहें तोसे कैसे पियाकहाँ कहाँ ढूंढे तुझे जिया, ढूंढे जिया……… कहूँ कैसे, थामूँ कैसे, रोकूँ कैसेनीर जो बरसे नैनो से, नैनो से नीर जो बरसेबदरा छाए तोसे मिलन की आस मेंनैना नीर बहाए …

घनघोर घटा छाई

घनघोर घटा छाई  रे, घनघोर घटा छाई  रेमेरे मीत के मिलन की बेला आई रेआई रे मिलन की बेला आई रेघनघोर घटा छाई रे – २ मन व्याकुल हो चला, मन व्याकुल हो चलाना जाने कौन चितचोर इसे मिलाजाने कौन दिशा संग ये किसके चलामन व्याकुल हो चला – २ अब कित जाऊं मैं, कि घनघोर घटा छाई …

शिवामृत

आज मधुशाला में इतनी मधु नहींकि बुझ जाए जीवन की प्यासकिस डगर तू चलेगा राहीकिस राह की कैसी आसपाने को क्या पाएगा चलतेबैठ यहाँ, यहीं बनाएं एक शिवालाक्यों ढूँढू मैं कहीं कोई मधुशालाआ पीते हैं बैठ यहाँ शिवामृत का प्याला

आरक्षण का अभिशाप

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई  बाँट चुके भगवान को  धरती बांटी अम्बर बांटा  अब ना बांटो इंसान को  धर्म स्थानो पर लहू बहाया  कर्मभूमि को तो छोड़ दो  ज्ञान के पीठ में अब तुम  ज्ञान का सागर मत बांटो  जाट गुज्जर पाटीदार जो भी हो  इसी धरा की तुम संतान हो  बहुत हो चुके बंटवारे धरा के  अब और …

आरक्षण का दानव

आरक्षण की मांग पर  जल रहा,  राष्ट्र का कोना कोना  रोती बिलखती जनता को   देख रहे नेता तान अपना सीना  आरक्षण की अगन में पका रहे  राष्ट्र नेता अपनी रोटी  बन गिद्द नोच नोच खा रहे  जनता की बोटी बोटी  रगों में आज लहू नहीं  बह रही है जाति  आदमी की भूख रोटी की नहीं  हो गई है आरक्षण …

धर्मान्धता

धर्मान्धता की आंधी चली उसमें बह चली राष्ट्र की अस्मिता  तुम बोले मैं बड़ा, हम बोलेन हम बड़े  किन्तु क्या कभी सोचा है राष्ट्र हमसे बड़ा  पहले मानव ने धरा बांटी  फिर बने धर्म के अनुयायी  ना जाने कहाँ से पैदा हुए नेता  ले आये बीच में धर्मान्धता  मानव को मानव से बांटा  चीर दी …