Poem – Hindi

जीवन से आशाएं

आशाओं से भरा ये जीवनया जीवन से बनी आशाएंकिस बात को हम मानेकिस डगर पर हम जाएंदेखें यदि जीवन कोतो लगता है नीरस बिन आशा केकिन्तु पहलू दूसरा देखेंतो जीवन से भी हैं आशाएं जीवन की हर डगर परबीज आशा का बोते हैंआगे बढ़ते हुए हम जीवन मेंसफलता की आशा करते हैंबिन आशा के जीवन अधूरा …

धधकती ज्वाला में खोया है हर कोई

धधकती ज्वाला में खोया है हर कोई  ना अपनों में ना परायों में पाया है कोई  दुःख की तपिश में आज जीता है हर इंसान  सुख की ललक में बन रहा वो हैवान  था वक़्त कभी जब अपनों में बैठा करते थे दुखों की ज्वाला पर अपनत्व का मलहम लगाते थे  था वक़्त कभी जब …

नदिया

अठखेलियाँ खाती नदी की धारा से  सीखा क्या तुमने जीवन में  क्या सिर्फ तुमने उसकी चंचलता देखी  या देखा उसका अल्हड़पन  कभी देखी तुमने उसकी सहिष्णुता  या कभी देखी उसकी सरलता  नदिया के प्रवाह में छुपी अपनी कहानी है  उसकी अठखेलियों में भी  छुपी जीवन की अटूट पहेली है  कैसी शांत प्रवृति से एक नदिया  …

मरता है तो मरने दो

वो मरता है तो मरने दो  नेता हैं तो क्षमा मांग लेंगे  उसके मरने से उनको क्या  वो तो सत्ता के नाम मरता है  फांसी वो लगाये, चाहे खाए विष  नेताओं को उससे क्या लेना है  सत्ता के गलियारों में  बस दो चार पल उसपर बोलना है  किसान हो वो, या किसी का पिता  इससे नेताओं का क्या …

तरक्की की होड़

जब हम छोटे बच्चे थे दिल से हम सच्चे थे जात पात का नहीं था ज्ञान भेद भाव से थे अनजान जब हम छोटे बच्चे थे गली में जा खेला करते थे छत पर रात रात की बैठक थी चारपाई पर सेज सजती थी जब हम छोटे बच्चे थे मिलकर एक घर में रहते थे …

जीवन पत्तों सा

पत्तों से सीखो तुम ज़िन्दगी का अफ़सानाजीते है वो तुम्हें देने को स्वच्छ वायुजीते हैं वो तुम्हें देने को फल और फ़ूलदेते हैं सारी उम्र वो दूसरो कोसूख कर भी वो करते हैं भला सबकापेड़ उनको भले ही झाड़ कर गिरा देंपत्ते फिर भी खाद बन पेड़ के ही काम आते हैंकुछ भी हो रिश्ते …

चंद प्रश्न और प्रार्थना

क्या तुम शान्ति नहीं चाहते? क्या तुम्हारे जीवन में नहीं कोई रस? क्यों तुम फैलाते हो आतंक? क्या यही है तुम्हारा धर्म? क्या नहीं चाहते तुम जीना? क्या नहीं चाहते लाना जीवन में नवरस? क्या तुम ईश्वर को नहीं पूजते? क्या तुम धर्मान्धता में हो डूबे? क्यों फैलाते हो तुम यूँ आतंक? क्या नहीं चाहते …

प्रश्नात्मक नारी स्वरुप

आशा की वो किरण बन कर आई थी तू  और ना जाने कैसे ज्वाला बन गई जीवन अन्धकार दूर करते करते ना जाने कैसे चिता प्रज्वलित कर गई मानसिक संतुलन को स्थिर करते करते ना जाने कैसे मानस को असंतुलित कर गयी कभी बालिका, कभी भगिनी, कभी माता, कभी भार्या इस काया में थी, कब …

परिणय की वर्षगाँठ

प्रतीत होता है जैसे कल की ही बात है वही कल जब तुमसे भेंट हुई थी वही कल जब हम मिले थे प्रतीत होता है जैसे कल की ही बात है किन्तु समय का पहिया घूम रहा था समय का चक्र अपनी गाती पर था जो बात कल की प्रतीत होती है आज उसको २ …

हैदर – एक सूत्र गाथा

विशाल भरद्वाज ने जब बनाई हैदर सोचा उन्होंने कि कहेंगे उसको हैमलेट किन्तु चूक गए वो अपनी करनी में रह गए वो सही विषय चुनने में|| चुना उन्होंने बशारत की कहानी को सन १९९५ में घटित एक जुबानी को किन्तु भूल गए कि कहानी है एकतरफा किसी का हाल बयान किया तो दूजा भूल गए|| …