पिला उसे शब्दों का हलाहल कहते हो तुम उसको विषधर कर उसपर सह्ब्दों के वार कहते हो तुम उसको विषधर नहीं उसमें उतना विष जितना हलाहल उसने पिया कहते क्यों हो उसको विषधर क्यों पकड़ते हो उसका अधर धीरज नहीं गर तुम रखते वश में गर खुद के नहीं रह सकते तो क्यों चलते हो …
बिटिया जबसे तुम आयी हो जीवन में नयी खुशियाँ लायीं होपूरी की तुमने मेरी अभिलाषाभर गयी है जीवन में अब आशा तुमसे मेरा जीवन हुआ पूर्णहुआ मैं जीवन संघर्ष में उत्तीर्णआने से तुम्हारे गूंजी आँगन में किलकारीरंगीन हुई मेरे जीवन की चित्रकारी तुम हो मेरे जीवन का सारांशतुम हो मेरा अपना भाग्यांशतुम ही हो अब …
चित्कार आज मष्तिस्क में है जीवन हाला पी जाने की कि कैसे करूँ मैं खाली ये प्याला हो रहा कहीं नव जीवन कोपलित ह्रदयनाद भी हो रहा इस प्रकार नहीं रहा अब जीवन से सम्बन्ध अश्रुओं की माला मैं पीरों रहा पर कैसे करूँ खाली ये प्याला राह नहीं मिलती मुझे अब भटक गया हूँ …
छल कपट की दुनिया है हर एक है दूसरे से आगे बस कोई कह जाता है अपनी विपदा कोई शांत सहता रहता है सर्वदा स्वर ऊँचा कर कहते हैं जो क्या दबा जाते हैं छल अपना क्या अपने मीठे शब्दों में कपट छुपा जाते हैं अपना शांत कहीं कोई है जग में तो नहीं उसके …
जीवन की डगर पर हमराह तो बहुत मिले जीवन की इस डगर पर अंत तक का साथ ना मिला मिले बहुतेरे जग में हर किसी की थी अपनी राह इस डगर पर साथ मेरे ना बना कोई हमसफ़र जीवन संध्या के पल पर तुम मिले तो कुछ आस बंधी कि जीवन डगर पर हमें भी …
बैठ मदिरालय मैं अज्ञानी मैं कर रहा ज्ञान वर्धन इतने ज्ञानी यहाँ मिले हैं नहीं ज्ञान को बंधन दो घूँट मदिरा के उतार हलक से कर रहा मैं क्रीडा आज जान वर्धन करना है उठाया है मैंने ये बीड़ा जीवन की घनघोर घटा से जिस असमंजस में घिरा ज्ञान अर्जन कर उस घटा से आज …
आज पीकर भी इतनी जीवन हालाबूँद नहीं छूटी ना टूटी अश्रुमालाउठा आज मैं पी गया विष का प्यालाफिर भी अटूट है है जीवन मालाप्रताड़ना से भी नहीं रहा अछूताअज्ञानी से बन गया मैं ज्ञान का दाताफिर भी अटूट है मेरी ये अश्रुमालाजीवन हाला से भरा है आज मेरा प्यालापीकर भी उसे अटूट है जीवन की …
कारे बदरा कारे मेघाबरसे ऐसे अबके बरसघाटी में वो नीर बहा,जन जीवन हुआ नष्टदेवों की घाटी थी वो,जहां वर्षा ने संहार किया हजारों के प्राण लिए,लाखों को बेघर कियाअबके बरस मेघा ऐसे बरसेधरा पर नरसंहार हुआजो वर्षा करती थी धरा का श्रृंगारउसने ही नरसंहार किया प्रकृति का प्रकोप कहें इसेया कहें मानव का लोभकेदार के …
कर आँखें नम नाम दे रहे भगवान् कोमानव की गलती से अंत हुआ मानव काप्रकृति का कर विनाशप्रकृति को ही कोस रहेजब जीना है गोद में प्रकृति कीतो जियो उसकी सुन्दरता मेंविकृत गर करोगे प्रकृति कोतो होगा प्रलय सा विनाश हीतांडव में प्रकृति केमिलाप होगा काल से हीग्रस्त अपनी ही करनी के हुए होफिर प्रकृति …
क्यों तू मुझे मारे, हूँ मैं तेरा ही अंश मेरे कारण ही चलते हैं ये वंश बेटी, बहन, पत्नी, माँ बन मैं रहती घर आँगन को मैं रोशन करती ना मार मुझे तू, हूँ मैं तेरा ही अंश मार मुझे ना बन तू एक कंस बन कली तेरा ही आँगन महकाऊँगी मीठी अपनी बोली तुझे …