बैठ धरा पर देख रहे थेस्वर्ग सा मंजरनाम ले भोले कागटक रहे थे भंग जो आनंद मिला भक्ति काजो हुआ जीवन दर्शनना था कुछ ऐसा बचाजो ना किया किसी को अर्पण निद्रगोश में जब समायेजग सारा लगा न्याराजब खुले चक्षु हमारेहुआ असल ज्ञानार्जन बैठ धरा पर ले भोले का नामभंग के रंग में किया स्वर्ग …
आज अम्बर में उड़तेमंजर यूँ सामने आयादेखा का धरा का जो रूपह्रदय आनंदित हुआ बादलों की चादर ओढेअम्बर से मैं चलाचादर ज्यों हटतीदेखता धरा पर तुषार धवल तुषार धवल की परतों सेदिखती वृक्षों की शाखाएंवृक्षों की शाखाओं तलेदिखती मानव बस्ती प्रकृती और मानव की रचना केदेख मेल को ह्रदय उल्लासित हुआदेख अम्बर से तुषार धवलबादलों …
ॐ हरि हर हर नमः शिवायॐ हरि हर हर नमः शिवायतज संसार बने तपस्वीचढ़ कैलाश बने सन्यासीधरी मृगछाल धरी शरीर पर भस्मीॐ हरि हर हर नमः शिवायॐ हरि हर हर नमः शिवायकर विषपान देवजन तारेधर नाग जो कंठ पर आवेजग में आज नीलकंठ कहावेॐ हरि हर हर नमः शिवायॐ हरि हर हर नमः शिवायरहे जो …
जीवन से जीवन का है ये कैसा नाता नहीं संसार में जो इसको समझता हर पल हर क्षण लेता एक परीक्षा कैसे कोई पूरी करे जीवन की समीक्षा हर रिश्ता हर नाता बंधा अलग डोर से रिश्तों के द्वन्द में जीवन उलझता हर ओर से कैसे सुलझाए कोई रिश्तो की ये गुत्थी दर लगता है …
बिन तिहारे ये जग सूना बिन तिहारे ये संसार अधूरा जो मैं जग में ढूंढा किया तिहारे चरणों में जा मिला मात-पिता तुम मोरे बिन तिहारे ये संसार अधूरा जनम से चला संग तिहारे अधर खोल सीखा बोलना कैसे भूलू वो बिसरी बातें कैसे भूलू वो बिसरे दिन गोद में तिहारी निकला बालपन आँगन में …
पिला उसे शब्दों का हलाहल कहते हो तुम उसको विषधर कर उसपर सह्ब्दों के वार कहते हो तुम उसको विषधर नहीं उसमें उतना विष जितना हलाहल उसने पिया कहते क्यों हो उसको विषधर क्यों पकड़ते हो उसका अधर धीरज नहीं गर तुम रखते वश में गर खुद के नहीं रह सकते तो क्यों चलते हो …
बिटिया जबसे तुम आयी हो जीवन में नयी खुशियाँ लायीं होपूरी की तुमने मेरी अभिलाषाभर गयी है जीवन में अब आशा तुमसे मेरा जीवन हुआ पूर्णहुआ मैं जीवन संघर्ष में उत्तीर्णआने से तुम्हारे गूंजी आँगन में किलकारीरंगीन हुई मेरे जीवन की चित्रकारी तुम हो मेरे जीवन का सारांशतुम हो मेरा अपना भाग्यांशतुम ही हो अब …
चित्कार आज मष्तिस्क में है जीवन हाला पी जाने की कि कैसे करूँ मैं खाली ये प्याला हो रहा कहीं नव जीवन कोपलित ह्रदयनाद भी हो रहा इस प्रकार नहीं रहा अब जीवन से सम्बन्ध अश्रुओं की माला मैं पीरों रहा पर कैसे करूँ खाली ये प्याला राह नहीं मिलती मुझे अब भटक गया हूँ …
छल कपट की दुनिया है हर एक है दूसरे से आगे बस कोई कह जाता है अपनी विपदा कोई शांत सहता रहता है सर्वदा स्वर ऊँचा कर कहते हैं जो क्या दबा जाते हैं छल अपना क्या अपने मीठे शब्दों में कपट छुपा जाते हैं अपना शांत कहीं कोई है जग में तो नहीं उसके …
जीवन की डगर पर हमराह तो बहुत मिले जीवन की इस डगर पर अंत तक का साथ ना मिला मिले बहुतेरे जग में हर किसी की थी अपनी राह इस डगर पर साथ मेरे ना बना कोई हमसफ़र जीवन संध्या के पल पर तुम मिले तो कुछ आस बंधी कि जीवन डगर पर हमें भी …