क्या कहें और कैसे कहें कि कहीं छुपा एक राज है कहीं ज़ुबान पर आ गया तो खुदा समझ मेरे जज़्बात हैं कहीं किसी के नूर में छुपे हुए कुछ अल्फ़ाज़ हैं कहीं हलक से सरक गए तो खुदा समझ मेरे हालत हैं कि तकल्लुफ़ ना करना मेरी रूह के दीदार का कहीं दीदार गर …
निगाहों में तेरी ज़िंदगी अपनी ढूँढते है जीने के लिए तेरी बाहों का आसरा चाहते हैं दिन कुछ ही गुज़रे है दूर तुझसे फिर भी ना जाने एक अरसा क्यूँ बिता लगता है ज़ुस्तज़ु है मेरी या है कोई आरज़ू कि आँख भी खुले तो तेरी बाहों में और कभी मौत भी आए तो आसरा …
कहीं तो आज किसी की याद आएगी छुपते छुपाते कहीं बात निकल आएगी कहीं फ़िज़ाएँ भी गुनगुनाएँगीं यादों की पुरानी परत फिर निकल आएगी निशाँ ज़ख़्मों के कैसे अब छुपाएँगे कि पुराने वक़्त की याद कैसे दबाएँगे दबे हुए रूह के ज़ख़्म फिर तड़पाएँगे परतों से निकल नासूर बन जाएँगे कहीं तो आज किसी की …
फ़िज़ाओं के रूख से आज रूह मेरी काँप उठी है कि तनहाइयों के साये में मेरी ज़िंदगी बसर करती है जिनको अपना समझा था वे बेग़ाने हो गए जिनके साथ का आसरा था वही तूफ़ान में छोड़ चले गए की अब तो आलम है कुछ ऐसा कि रिश्तों से ही डर लगता है ढूँढते थे …
ज़िन्दगी से जो मिला वो गम ना थे कुछ गर वो थे तो लम्हों के तज़ुर्बे सीने से लगाया जिन्हें वो गम ना थे कुछ गर वो थे तो तमन्नाओं के जनाजे तसव्वुर से थे वो लम्हे हमारे जिन्हें हमने बुना था तमन्नाओं के सहारे तजुर्बों ने हमको दिखाई ऐसी असलियत कि गमों से लगा …
काश कि कुछ ऐसा होताजिसमें कुछ खट्टा कुछ मीठा होताहर लम्हा मैं उन्हें ही पूछा करतागर उन्हें ज़रा सा भी मेरा इल्म होताअब क्या कहें और किससे कहेकि ना वो वज़ूद रहा ना रब का वास्ताकहीं आब-ऐ-तल्ख़ है छुपा ज़िन्दगी मेंतो कहीं अश्क-ऐ-फ़िज़ा भी खामोश हैअब तो एक ही सुरूर ज़िंदा है जहाँ मेंकि कैसे …
बद्दुआ में भी तो शामिल है दुआतो क्या हुआ तुमने हमें बद्दुआ दीकहीं तुम्हारे जेहन में दुआ के वक़्तइस काफ़िर का नाम तो शुमार हुआ कि ज़िन्दगी भर की बद्दुआओं मेंइस काफ़िर का नाम लेकरअपनी इबादत में ऐ ख़ुदादेने वाला मेहरबाँ तो हुआ गर दुआओं में मेरा नाम ऐ खुदातेरे इल्म में ना आया कभीतो …
ता ज़िन्दगी मैं खामोश रहाखामोश दर्द में जीता रहाक़ि सोचता था कभी ज़िन्दगी मेंमैं हाल-ए-दिल बयां करूँगा सुनते सुनते होश खो गएहाल-ए-दिल बयां ना हुआदर्द अपनी हद से आज़ाद हुआफिर भी शब्द जुबां पर ना आए आज सोचा था मेरे अपने होंगेजो मुझमें एक इंसां देखेंगेशायद वो मुझे समझेंगेकभी बैठ साथ मेरी सुनेंगे जब प्लाट …
कहते इसे कहानी घर घर की हैं इसमें ना कोई अपना है ना पराया पाना हर कदम पर तुमको धोखा है यही बस इस कहानी का झरोखा है कोई किसी का नहीं है यहाँ सारे अपने आप से ही जूझ रहे किसी को नहीं है समय यहाँ सारे अपने ही ग़मों से लड़ रहे कहते …
कहने को बहुत कुछ था मगर वो सुन नहीं पाये आये थे मेरे दर पर मिलने मगर मिल नहीं पाये हमने सोचा कि गुफ्तगूं करेंगे मगर फिर खामोश ही रह गए कहने को बहुत कुछ था मगर वो सुन नहीं पाये अंदाज़ वो अपने अब देखते हैं आईने में अब खुद से छुपकर जुबां पर उनके …