गर धडकन ही बंद करनी थीतो इस पत्थर को दिल क्यों दियागर अंधेरों में तन्हा छोड़ना थातो जिंदगी में उजाला बन आई क्यों क्या खता थी हमारी कि ये सिला दियाबन मोहब्बत आई मेरी जिंदगी मेंऔर तन्हाई का दामन थमा गईग़मों से तू मेरी जिंदगी डुबो गई इश्क में हमने कभी सौदा ना कियाऔर सौदे …
जिंदगी तुझसे क्या गिला करेंकि तुझसे हम क्या शिकवा करेंगर साथ ही नहीं तकदीर हमारीतो आंसुओं से तेरा दामन क्यों भरेरंज-ओ-गम की इस महफ़िल मेंक्यों रुसवा तुझे करें हमदामन में तेरी खुशियाँ हैं मेरीरुसवाई में है राहे तन्हाई
कितनी मासूमियत से आपनेअपने ज़ख्मों का हिसाब रखा हैकि हिजाब में छुपा आपनेअपने लबों पर लफ़्ज़ों को रोका है कभी जिंदगी के किसी मोड परक्या आपको अपना सितम याद आएगाकि आपकी ही मेहरबानी हैजो आज एक इंसान खुद से अजनबी हो चला है कितनी मासूमियत से आपनेहमसे एहसास-ऐ-जुदाई बयान किया हैकि हिजाब आपका आज बन …
कुछ शेर कभी कहीं सुने या पढ़े थे| ठीक से याद तो नहीं, पर सोचा कि कुछ चलते फिरते शायरों कि चलते फिरते पैगाम की तरह इन्हें भी आपके सामने पेश किया जाए| हालांकि मैं खुद इनसे वाकफियत नहीं रखता, लेकिन फिर भी जरा मुलाहिजा तो फरमाइये कि चुनिन्दा शेर ऐसे भी कहे जाते हैं …
आग से ना खेल इतनाकि दिलों में आग लग जाएकि दिलों में गर आग लगी तो जिंदगी में रोनक ना होगीगर जलने का इतना शौक है तो जल एक परवाने की तरहदेख उसके गम में शमा भी जलती है तिल तिल कर
मयंक की एक उर्दू पोएम –———————————–कैसे कहें ये कहानी हम अपनी जुबानी कुछ ऐसी ही बीती है हमारी जिंदगानी करते रहे हम सजदा उनका हर कदम सोचते रहे वो बनेंगे हमारे हमदम शायद था वो कोई ख्वाब एक सलोना बना गया हमें इश्क में ही दीवाना सवालात भी किये ज़माने ने हमारी तन्हाई पर कि …
तेरी तन्हाई में भी मेरा साया तेरे साथ हैगर नज़र उठाए तो देख मेरा अक्स तेरे साथ हैना तू कर गिला उनसे अपने गम-ओ-उल्फत काना कर तू शिकवा जिंदगी केदोराहे काउठ ऐ मुसाफिर तू चलाचल राह अपनीकि तेरी मंजील तक ये बंदा तेरे साथ है शिद्दत से जिस जिंदगानी की तुझे तलाश हैउस मंजिल तक …
मौसम-ऐ-जज़्बात में बहकर रिश्ते नहीं तोडा करतेअपनी ही जिंदगी की ज़मीन पर कांटे नहीं बोया करतेतूफानों से गुजारते हुए आँसमां नहीं देखा करतेज़मीन से गर जुड जीना है तो शाखों पे घरोंदे नहीं बनाया करते मौसम-ऐ-जज्बात में बहकर रिश्ते नहीं तोडा करतेकाँटों से गर डरते हो तो फूलों से नाते नहीं जोड़ा करतेतन्हाई से गर …
खून-ऐ-जिगर से आह निकली है तेरीकि एक आस में डूबी जिंदगी है तेरीइबादत-ऐ-खुदा से कर तू राहगुज़रकि मंजिल तन्हाई की तुझे ना मिले कभी आब-ऐ-तल्ख़ में डूब ना सुना तू नगमेंकि हमने जिंदगी में और भी गम देखे हैंशिद्दत से तेरी आरज़ू लिए बैठे थे हमकि तेरी जुदाई का गम और भी है हर्फ़-ओ-लफ़्ज़ों में …
गर तुम कुछ ना कहते हमसेतो शायद ये दिल बैचैन होतागर तुम ना करते शिकवा कोईतो शायद ये दिल परेशाँ होता गर ना करते यूँ तुम हमें रुसवातो शायद ये दिल यूँ ना धडकतागर ना करते तुम क़त्ल हमारातो शायद ये रूह बेज़ार ना होती कैसे कहें तुमसे कि लफ्जात तुम्हारेहलक से हमारी जान ले …