तरन्नुम-ऐ-गुजारिश है तन्हाई सेकि राहगुज़र को एक लम्हा आसरा देउल्फत-ऐ-इश्क से आया है बेआसराइसको अपनी जुल्फों का साया दे अन्ज-ऐ-इज्तिराब से बेआबरू हो चला हैआब-ऐ-तल्ख़ से प्याला इसका भरा हैइत्तिहाम बेवफाई का ओढ़ ये गरीबआज दर पे तेरे बेआसरा खडा है कहता है मुझसे की राज़-ऐ-दिल किससे कहूँकि अब भी मेरा सामान सौदाई के पास …
हमारे अरमानों का जो क़त्ल किये जाते थे हमारी मोहब्बत को जो अब्तर किये जाते थे आब-ऐ-चश्म हमें जो पिलाए जाते थेऐ खुदा हमें आज वो काफिर कहते हैं आशियाना जो दिल को बनाया चाहते थेहमारे खून-ऐ- रोश्नाए से कलाम लिखा चाहते थेअज़ाब में हमारे जो अश्किया बने से रहते थे अख्ज़ वो हैं जो …
इश्क-ऐ-वफ़ा से वो रूबरू ना हुए कभीऔर हमसे माने वफ़ा के पूछे जाते हैंरूह से अपनी किसी को चाह ना सके वोऔर हमसे मोहब्बत के माने पूछे जाते हैं एतबार वो खुद का ना कर सके ता उम्रऔर हमें माने एतबार के समझाए जाते हैंतसव्वुर-ऐ-दर्द हमारा ना सुन सके कभीऔर हमसे ही अपनी तकलीफ बयाँ …
तुम कहे जाते हो हमें दगाबाज़तुम कहे जाते हो हमें बेदर्दकहाँ का ये इन्साफ है कहो ज़राकि तुम्हारी नज़र का ना हो ये धोखा कहा गर तुमने हमें बेवफातो सिला है ये तुम्हारी ही मोहब्बत काकहा गर तुमने हमें बेगैरततो जान-ऐ-हुस्ना है ये तेरी ही बद्दुआ जाना है गर तुझे अपनी मंजिल की औरतो ले …
जिंदगी गर सोच कर जी सकतेतो विसाल-ऐ-यार दर रोज करतेसोच में गर इतनी ताकत होतीतो इस वक्त तुम हमारे साथ होते तकल्लुफ क्यों करे हम सोचने काजब इन्तेज़ार है फैसले की घडी कासोचने से गर यूँ वक्त बीततातो ये जहाँ में कोई यूँ बेगार ना होता सोचने से गर विसाल-ऐ-यार होतातो हम इस कदर तन्हा …
जिद्द थी मेरी को तुझे देखूंथी चाह असीम तुझे पाने कीहद्द ये थी मेरी चाहत कीकि ही थी जिंदगी की जुत्सजू आलम इस कदर था जिंदगी काकि हर पल तेरी ही ख्वाहिश थीरोक ना सके खुद को ऐ राहगुज़रतेरी बंदगी की ये बेताबी थी क्या कहें कि तेरे दीदार से आजना दिल की वो खलिश …
इश्क की इबादत में हमने दुनिया छोड़ीइश्क के लम्हों से हमने जिंदगी जोड़ीफिर आज इश्क एक बोझ क्यों हैक्यों इश्क आज दर्द का दरिया है लम्हात जो उनसे दूर गुजरेंगेवो लम्हात मौत के साये से क्यों हैंजिंदगी जिसपर नाम उनका लिखा थाआज फिर वो एक कोरा कागज़ क्यों है अफ़साना बनी जो मेरी मोहब्बततो अफसुर्दा …
बेज़ुबां दिल को कैसे समझाएं कि ये बेपरवाह बन इश्क कर बैठाअदा-ऐ-हुस्न कैसे समझाएँ इसे कि ये तो उसी हुस्न पर फ़िदा है ना इसे ज़माने कि फिक्र है अबना कोई शिकवा शिकायत हुस्न सेमशरूफ है ये एहसास-ऐ-मोहब्बत में मगरूर है अपने कलाम-ऐ-इश्क पर क्या खबर इसे कि हुस्न ठहरा हुस्नज़माना है उस हुस्न का …
चंद शेर जो महफ़िल में कहे और चंद जो रह गए अनकहे, उनको पेश करता हूँ आपकी नज़र-ऐ-इनायत के लिए खामोश जुबां से जो उनका नाम लेते हो अपने होंठों के चिलमन से उसे छुपाए जाते होगर ये जज्बा-ऐ-दिल निगाहों से बयाँ करतेतो हया के नूर से सजे एक चाँद लगते______________________________________ उनके आने की आहट …
खबर की खबर आई कुछ ऐसी खबरपरेशाँ हुए हम ना हुई तुमको ये खबरसोच कर तन्हा होगी तुम्हारी नज़रखामोश रहे हम यूँ शाम-ओ-सहर ना इल्म था हमें कि ये खामोशीदफ्न कर देगी हमारी चाहतफिकरे कसेंगे, कसीदे भी कहेंगेजहाँ वाले हमे बेगैरत भी कहेंगे सह गए हम हर सितम यह सोचकरकि बेखयाली में भी तुझसे शिकवा …