तूफां में कश्ती छोड़ किनारों का आसरा ना ढूंढ लड़ मजधार के तूफानों से कश्ती किनारे पर मोड _______________________________________ साथ गर तू देगा खुदका तो खुदा तेरे साथ होगा मजधार के भंवर से गर लड़ेगा तो किनारा तेरे पास होगा________________________________________ ऐसे अल्फाज़ ना कहो कि अभी मैं जिंदा हूँ तेरे दिल में बसने का ख्वाहिशमंद खुदा का …
उनकी मंजिलों में अपनी राहें ढूंढता फिरता हूँ एक फकीर हूँ मैं चिरागों में रौशनी ढूँढता हूँ गर मेरे रकीब से पूछोगे कि किस राह गुज़रा हूँ मैं तो पाओगे की अपनी ही कब्र में बसेरा ढूँढता हूँ मैं___________________________________ तवज्जो ना कर किसी की किनारे बैठ करगर हिम्मत है तो मजधार में कश्ती उतार किनारे …
तन्हाईयों के दायरे मेंजब हुआ खुदा से दीदार हमनें पूछा क्यों खुदायाक्या सोच तुने बनाया जहाँगर बनाया ये जहाँतो क्या सोच तुनेइंसान को मोहब्बत करना सिखायाक्या सोच कर तुनेइस इंसान का दिल बनायागर इसे जज्बातों में घेरना ही थातो क्या सोच तुने इस इंसान का दिमाग सजायातन्हाईयों के दायरे मेंजब हुआ खुदा से दीदारतो खुदा …
एक महफ़िल कि खामोशी, एक शायर का इन्तेकाल हो सकती है| उसपर चंद अल्फाज़ ज़ेहन में आये थे, पेश करता हूँ – नगमें अफसानों के गाते हो और हमें दिवाना कहते हो अरे हमने दिल दिया है, किसी का दिल तोडा तो नहीं हमें बेवफा, बेगैरत, बेज़ार क्या कहते हो हम किसी के दिलों …
ज़र्रा रोशनाई जिसे कहते हो तुम कतरा-ऐ-खून-ऐ-जिगर है दीवानापन जिसे कहते हो तुम तुम्हारी मोहब्बत का आलम है कतरा कतरा जीते हैं बिन तुम्हारे तन्हा तन्हा सफर करते हैं यादों में आज बसे हैं वो दिन जो बस बेसहारा गुज़ारे हैं गर सोचते हो तुम कुछ यूँ कि हम बेज़ार कैसे जीते हैं तो ज़रा …
नज़रें हमारी जो उठीं, नज़ारे ना दिखेगर कुछ दिखा तो उनके चेहरे का नूरकिन निगाहों से हम उन्हें देखें कि दिखते हैं वो इश्क में चूर उन्हें देख उनकी निगाहों को ना देखेंकि उनमें हमारा ही अक्स नज़र आता है गर हया-ऐ-मोहब्बत में पलकें झुकाएं तो पैमाना-ऐ-शबनम में उनका नूर नज़र आता है नजदीकियां तो …
चंद लाफ्जात ऐसे होते हैं, जिन्हें सुन कर रूह से एक आह निकलती है…..आज ऐसे ही कुछ कलाम पढ़ा तो एक रूह कि आह पर कुछ लफ्जात हमारे भी निकल पड़े…. पेश-ऐ-नज़र है वो चंद लफ्ज़ जिन्होंने हमारे कलाम को जन्म दिया – बयाँ ना कर पाई ज़ुबान जो लड़खड़ाई हम पे इल्ज़ाम बेवफ़ाई का! …
दिल यह कमज़ोर हुआ जाता है तेरी याद में बेचैन हुआ जाता हैकदम उस राह की ओर बढे जाते हैंजिस ओर तेरा अक्स नज़र आता है न कोई मंजिल है न ही कोई मंज़रसफर ये सिफर की कगार तक चला जाता हैअस्ताफ मेरे अपना दीदार करा दे कि अश्क अब शबनम के नज़र आते हैं …
कुछ यूँ ही बदला है खयालों मेंकि आज चाँद भी छुपा है बादलों मेंइन्तेज़ार था जिनके आने काना इल्म हुआ हमें उनके आहट का यूँ छुपे थे वो उस चिलमन मेंजैसे आफताब छुपा हो पलकों मेंना हमारी नज़र उस ओर उठीना उनके कदम हमारी ओर बढे ना जानते थे हाल-ऐ-दिल उनकाना कभी जान पाते एहसासउनका …
दर्द-ऐ-दिल का गिला किससे करें जानिबकि यहाँ तो फिजाएं भी ग़मगीन हो चली हैंयहाँ हम हर कदम जार जार हुए जाते हैंवहाँ वो हमारी बेवफाई को जाहिर किये जाते हैंकहे जाते हैं वो हमसे ऐ कुछ यूँ ऐ खुदाकि हम अपने शौक में खोये जाते हैंक्या कहें उनसे कि निगाहे दर पर लगी हैंसर भी …