Poem – Urdu

हाल-ऐ-मशरूफियत

कुछ तुम मशरूफ, कुछ हम मशरूफ,कि वक्त ना मिला यूँ गुफ्तगू काकुछ तुम तन्हा कुछ हम तन्हा,कि वक्त न मिला तेरे दीदार का क्या गिला करें क्या करें शिकवा कि हमको हमसे रूबरू होने का वक्त नहीं

कलम कि बेवफाई

दिल का दर्द कलम से उतर कागज पर बह गयाबहते बहते वो कागज़ पर एक स्याह लकीरें छोड़ गया इन लकीरों में जिंदगी की चुभन थी बीतें उन तन्हा लम्हों की सिमटन थीसोचा न था कि कलम यूँ बेवफा निकलेगीहमारे ही दर्द को हमारी आँखों के सामने रखेगीसोचा न था हमारे शब्द यूँ बेगार होंगेबेरूख …

हाल-ऐ-दिल

हाल-ऐ-दिल कुछ यूँ बेसब्र हुआकि तन्हाई में कुछ यूँ बेजार हुआलौट आई कुछ यादें पुरानीयाद आई वो देफवाई तुम्हारीहोकर रह गई है सिफर सी जिंदगी नहीं आसाँ इश्क की बंदगीभूलना चाह कर भी भूल ना पाएकुछ यूँ कौत के आये मिहब्बत के सायेतिस सी उभर आयी कुछ यूँ सर्दमहसूस हुआ कुछ मुझे जुदाई का दर्दएहसास …

जिंदगी

गुनगुनाती सी कुछ यूँ आई मेरे सपनो मेंउसकी वो चहल कर गई घर इस दिल मेंसोचते हैं कि गर वो चली गयी जिंदगी सेकिन मायूस लम्हों से गुज़रेगी बेराग जिंदगी कि उसके ख्वाबों खयालों में खेली ये जिंदगीबिन उसके बीते यूँ इसके उदास पल राहे तन्हाई मेंतकल्लुफ बड़े उठाये यूँ बेपनाह मोहब्बत करकि हमें सिला …

आलम-ऐ-मोहब्बत

आँखों के नशेमन से से जाम पिलाना चाहते हो होठों से अपने जो पैगाम देना चाहते होदुनिया से बचाकर जो जुल्फों में घेरना चाहते होआज हिज्र के आलम में ये रुख किये जाते हो बेसब्र क्यूँ हो इतना तन्हाई के डर सेक्यूँ थम जाते हैं कदम तुम्हारे खुदा के दर पेक्या है जो यूँ इल्तेजा …

नज़र

नज़र ना झुका कि इनमें मेरा अक्स नज़र आता हैकि नज़र ना चुरा इनमें मेरा इश्क नज़र आता हैयूँ बेदर्द ना बन कि तेरी जुदाई मार ना डालेकि जुदाई के दर्द में सिरहन उभर आती है

नासूर

आज वो गुज़ारा ज़माना याद आता हैहर एक बिता पल याद आता हैजिंदगी ने दिया जो ज़ख्मवो नासूर बन उभर आता हैक्या खता थी मेरी ऐ खुदाकि मने जिंदगी से ये सिला पाया हैना कोई रंज न कोई गिला कर सकते हैंकि दिल-ऐ-नासूर इतना गहरा पाया है

तलाश-ऐ-अक्स

ज़िन्दगी में अपना अक्स खोजता हूँरात–ओ–सहर आइना देखता हूँवक्त का दरिया है की थमता नहींउम्र का आँचल है की रुकता नहीं सोचता हूँ यूँही अक्सरसुलझाता नहीं क्यों ये भंवरमझधार में ना जाने क्यूँतलाशता हूँ मैं हमसफ़रज़िन्दगी में ना जाने क्यूँखत्म सी नहीं होती तलाशकि मौत कि और बढते हुए खोजता हूँ ज़िन्दगी के माने

इल्तेजा

शाम–ऐ–गम को रंगीन करके ख्वाबों में तेरे खोए रहते हैंगर भूले से आओ सामने तुम तो ख्वाब समझ कर सोये रहते हैंजुल्फों के साए में छुपा लो तुम कि जिंदगी से रुसवा हुए जाते हैंयादों में बसा लो आज हमें कि बाँहों में बेदम हुए जाते हैं रुख ना मोडो इस कदर बेरूख होकर ऐ …

पथ्थर

टूटना तो आइने की किस्मत हैआपकी खूबसूरती कि ये एक खिदमत हैसोचता हूँ इस मोड पर आकरक्यूँ ना आपसे ये सवाल करूँकि कहीं किसी मुकाम परक्या कभी किसी पथ्थर को तराशा हैयूँ देखिये कि शीशे की मूरत नहीं बनतीपथ्थर तराश इंसान इबादत करते हैं