Poem – Urdu

मोहब्बत का परवाना

हमने दो लफ्ज क्या कहे इश्क परकि दुनिया ने हमें यूँ सुनायान हम सोच सके कि क्या है खता हमारीकि काँटों से हमारी सेज को सजायाना जानते थे कि वो लफ्ज हमारेकरेंगे हमें इस कदर रुसवाकि बेआबरू कर हमेंयूँ जार जार करेगी दुनियाकैसे कहें उनसे हम अपनी कहानीकैसे बयां करें हाल-ऐ-जिंदगानीक्या कहें कि क्या दर्द …

खुशी – खुदा की नेमत

खुशी ना ढूंढ तू अपनी किसी तमन्ना मेंकि दर्द ही मिलता है इस गली जाने सेना कर तू रोशनाई को इस कदर परेशाँकि हो जाए स्याह ये खून तेरे जिगर काखुशी ढूंढनी है गर तुझे कहीं ऐ बंदे तो जा तू खुदा के घर उसकी इबादत मेंखुशी गर तुझे मिलनी है कहीं ऐ बंदेतो जा …

आशियाँ

तिनका तिनका जोड़ आशियाँ यूँ सजाना ना हो कोई रुसवा न रहे कोई कहीं तन्हा ख्वाबों को भी कुछ इस कदर सजानाकी आँखों की राह ना टूटे दिल का अफसाना  ऐ राहगुजर, राहगीर में ना ढूंढ हमसफ़रकि राह से यूँ  बेगार बेवजह ना गुजरजीना मरना तो इस कायनात का खेल हैइसे तू अपनी आह से …

बेपरवाह

यादें गर खामोश कर जाती तो न होता ये दिल बेचैनना होते रूबरू इस कदर गम-ऐ-जिंदगी सेशामों तन्हाई ना करती इस कदर गुफ्तगूंना  होती जिंदगी में गहरी ज़ुत्सजु वादे उनके यूँ बेसब्र ना कर जातेगर बातों में उनकी शान-ऐ-वफ़ा ना होतीबातें उनकी जो आती है याद तुम्हेंसाबित  कर जाती हैं ईमान उनका कुछ थे वो …

मौसम-ऐ-जज़्बात

मौसम  तो है वही पुराना लौट आई पुरवाई भी ना जाने क्यूँ लगता है की हो तन्हाई और वो नहीं सोचने पर हम मजबूर हुए, पूछा हमने खुदा से भी समझ न सके ये दुरियाँ, यादों के साये में भी इन्तहा लगती ये आरज़ू-ऐ-इश्क की है कि आरज़ू की है ये जूत्सजू  ये दिल डूबा …

आँखें

कि हया शर्म लाज लज्जा है तो इन आँखों मेंपर कहीं गहराई में छुपी है किसी कि खामोशीदुनिया को दिखती है सिर्फ इनकी मासूमियतकि छिपी है कहीं इनमें कोई सच्चाई है तो कुछ गहराई इन आँखों मेंकि दिल का दर्द इनमें सिमट आता है कुछ तो है इन आँखों मेंकि होठों कि मुस्कान तक दबा …

काफिर

कौन कमबख्त कहता है तुझे काफिर गर बात मेरी करते हो ऐ जानिब तो जानो कि मैंने खुदाई को रुसवा किया है  अक्स पे मैंने खून-ऐ-रोशनाई से ज़िक्र किया है कि इबादत हम खुदा की क्या करें  जब खुदा ने ही ज़ख्म बेमिसाल दिया है कि आलम कुछ इस क़द्र है बेसब्र खुदा का ना …

जिंदगी अक्स में गर गुजरती

गर अपने होंठो पर सजाना है तो खुदा कि इबादत को सजागर कुछ गुनगुनाना है तो जिंदगी के नगमें गुनगुनाकि ये सफर नहीं किसी सिफार कि कगार काजानिब ये है अक्स तेरी ही शक्शियत काजिंदगी का मानिब समझ ऐ राहगुज़रकि राह में थक कर मंजीलें नहीं मिलतीसमझ बस इतना लीजे ऐ खुदा के बंदेकि यादों …