Poem – Urdu

गर नज़रों में उनकी

गर तनहाई में खुदा का दीदार मयस्सर ना होगर जुदाई में मोहब्बत का दर्द शामिल ना होगर झुकी इन पलकों में हया का डेरा न होक्या कहूँ में ऐ मेरे मौला गर ज़िन्दगी में जूनून का असर ना होगर जुल्फों में उनकी मेरा आसरा न होगर नज़रों में उनकी मेरी तस्वीर ना होकि ये मोहब्बत …

चाहत

गर हम दिन के पहलु में बैठेंया रात के आगोश में समां जाएंशाम-इ-सनम हमें न मिल सकेगीदीदार-इ-सनम न हो सकेगागर चाहत सनम कि है दिल मेंशाम का पहलु ना छूट सकेगा

इन्तेजार-ए-सनम

नाम गर लिखा हो सनम का शाम परजा उसके आगोश में उसका दीदार करउसकी साँसों के तरन्नुम में खो करअपने इश्क का इज़हार कर गर ना हो एतबार अपने लबों पर अपनी आँखों से तू बयान कर गर गिला हो कोई तो खुदा से अर्ज़ करमिलेगा तुझे भी सनम इंतज़ार करकि है क्या मज़ा उस …

मेरा अक्स

गर खुदा ने कभी मुझसे कहा होता… रुखसत हो तू हो फारिग अपनी कलम सेमैं कहता ऐ-खुदाये कलम है मेरी ज़िन्दगी मेरी तमन्नाकि ना कर इसको जुदा तू मुझसेन कर मेरे इश्क को रुसवागर कहीं मैं हूँ कगार परतो यही है वोह मेरा अक्स….

वक़्त नहीं

आज के दौर में हर किसी को बहुत कुछ पाने कि चाह है और इस चाह में उन्हें अपनों का ध्यान नहीं, ना ही उनके पास वक़्त है अपनो के लिए| इस कविता में कवी ने उसे बड़े ही नायब तरीके से ज़ाहिर किया है| ये कविता किसने लिखी ये मुझे इल्म तो नहीं, लेकिन …

उनका नशा

उनका नशा है कि छुटता नहींकदम हैं कि रुक कर उठते नहींन उन्होंने हमें यूँ मुड के देखान हमनी कभी संभल कर चलना सीखाराह तकते उनकी झरोखों में दिए जलाया करते हैंभूलकर कि हवा के झोंकों से दिए नहीं जला करतेखून कि रोशनाई बना कर लफ्ज लिखे थे ख़त मेंकि तूफ़ान में वोह लफ्ज भी …

कशमकश

सोचते हैं अक्सरकि कुसूर क्या है हमारायूँ क्यों होता है दर्द दिल मेंकहते हैं फलसफा ज़िन्दगी काआज जब कहा उनसेकि दिक्कते यूँ पेश आती हैंकह दिया उन्होंने भीवही शिकवा हमसेरुसवा ईन हो गए वोकि मोड़ लिया रुख हमसेसोचा न एक पल कोकी हम कहाँ जाएंगेछोड़ हमें चले वो राह अपनीना जाने कब आएँगेज़िन्दगी तुझसे क्या …

खड़े सिफर की कगार पर

खड़े हैं सिफर सी जिंदगी के मोड़ परआशय विहीन राह कि खोज परदेखते कतरे ज़िन्दगी के बिखरतेमानो है कोई कश्ती तूफ़ान में डूबते उतरते है एक इशारा ये खुदा काकि ना समझ पाएंगे क्यूँ हुआ इतना फख्रहै फ़िर भी दिल में ये जज्बाकि मिलेगी राह एक आगाज़ को अपनी मुस्कराहट से क्या तुम दिला सकते …

दर्द-ऐ-दिल

कि अभी तो हुई शुरू बात दिल कि हैऔर अभी तुम जाते होकि अभी तो नासूर–ऐ–दिल को छेड़ा हैऔर तुम जाते होकि अभी तो खून–ऐ–जिगर बाकी हैऔर तुम जाते हो ऐ दोस्त जुल्म यूँ न करन हो गर हिम्मत–ऐ–नज़र छेड के दास्ताँ–ऐ–जिगर हमें यूँ बेजार न कर

गर तुम पिलाओ मदिरा

गर तू अपने होंठों से मदिरा पिलाए तो मैं पी लूँकि तेरे हाथों से में बहुत मदिरा पी चुकागर तू अपने लबों से पिलाए तो मैं पी लूँकि तेरी आखों से मैं बहुत पी चुकागर भर अधर का प्याला पिलाए तो मैं पी लूँकि तेरे केसुओं की लटों से मैं बहुत पी चुकाऐ साकी गर …