This poem was specifically written for a very cute and fast friend of mine 🙂_________________________________________जान-ऐ-बहार के आते हीखिल पड़े हैं गुल-ऐ-गुलज़ारक्या कहेंहाल-ऐ-दिल काकि बेसब्र हुआ हर बारना चाह कर भी चाहा उनकोजिया में जानने को उनकोना जा सके कहीं दूर उनसेसमां यूँ बंधा उनके आगोश में
गुजारिश आज आपसे है ऐ सनमदे सको तो देना खुशी न देना गमकि गम का समंदर होता बहुत गहरा हैमाझी तो छोडिये साहिल तक डूब जाता है कि गम-ऐ-उल्फत में हम ना जी सकेंगेतेरी तनहाई में जाम भी ना पी सकेंगेकि पैमाना भी जब उठाते हैंकमबख्त उसमें भी तेरा अक्स नज़र आता है सोचते हैं …
तुझे चाहने की सज़ा पाता हूँतेरे ही गम में अपना लहू जलाता हूँना चाहते हुए भी अक्सर तेरे अक्स मेंमैं अपनी रौशनी ढूंढें जाता हूँरोशनाई कहीँ कम ना पडेये सोच के अपने लहू सेमैं ये नज़्म लीखे जाता हूँगुजारीश करता हूँ आपसे आजना ही करो रुसवा यूं मेरी चाहत कोना झुकाओ पलकें यूंभर नफ़रत नीगाहों …
किसी ने कभी सही कहा था…कि दीखता है मंजर असलीबजते हैं साज़ सारे…जब छेड़ दो तार दिल केनहीं मालुम क्यों….तुमने आवाज़ दी …और हम रो दिए ….आंसुओं की जगह कलम सेकागज़ पर येशब्द बिखेर दिए …
तन्हाई का आलम मुझे हर कहीँ घेर लेता हैं भीड़ में भी तनहां होने का गुमां होता है की तनहां आये हैं, तनहां ही चले जाना है, फीर भी तनहां रहने से दिल बेजाँ परेशां क्यों है तन्हाई का आलम मुझे हर कहीँ घेर लेता है भीड़ में भी तन्हाई का गुमां होता है वो पूछते हैं …