Poem – Urdu

दूर निकल आए हैं

दूर निकल आए हैं -२ हम तेरी चाहत में नहीं अब दिखती खुदाई  तेरी नज़रों की जुदाई में  दूर निकल आए हैं -२ हम तेरी निगाहो में नहीं मिलती राह अब हमें तेरी अपनी निगाहों में  कहीं क़ाफ़िला निकल कोई कहीं चाहत का जनाज़ा रूखसत हुए आज कुछ कुछ को मिला नया ज़माना दूर निकल …

क्या तेरा खोया है?

खोया सा आज तेरा दिल है खोये खोये से हैं तेरे शब्द  खोयी खोयी सी ये निगाहें  क्या तेरे सनम आज खोये हैं  किस तरह तुझे आज ढूंढे  कि  आज तेरा वज़ूद ही ग़ुम है निगाहों में दिखता एक सवाल है  कि आज तेरी ज़िन्दगी ही ग़ुम है  किस राह की तुझे तलाश है किस राह खोया है …

ख़बरों को हम बेचते हैं

कुछ पंक्तियाँ भारत के पराधिन मानसिकता वाले भारत के अजनबी अंग्रेज़ी भाषा के साहित्यकारिक पत्रकारों के लिए!! छोड़ आए हम अपनी शर्मोहया करते है बस बदज़ुबानी बयाँ  देश की हमें परवाह नहीं वामपंथ के हैं हम राही करते हैं बस ख़ुदपर गुमान नहीं देशभक्ति का हमपर निशान चाहते हैं बस धन धन धन सुनते हैं …

ना आज कोई रुख़्सार

नज़रों के सामने हमने वो देखा है हर हस्ती को आज हँसते देखा है ख़ुशनुमा आज हर रूह है शबनम भी आज चमकती चाँद सी है फैला है उजाला हर और  बयार भी हल्की हल्की बहती है आज क़ुदरत का नग़मा सुन रहा मैं हर और ना किसी की आज तवज्जो है ना कोई कर …

कलम आज फिर आमादा है

कलम आज फिर आमादा है  अपना रंग कागज़ पर बिखेरने को  रोक नहीं पा रहे हम आज कलम को  जो लिख रही हमारे ख्यालों को  ना जाने क्यों हाथ भी साथ नहीं  ना जाने क्यों कर रहे ये मनमानी  आज कलम फिर आमादा है  लिखने तो आवाज़ हमारी  हर पल सोचते हैं खयालों को रोकना  …

अपनो में बेगाने

अफ़सुर्दा हुए जाते हैं अफसानों में  अजनबी आज बन बैठे हैं हम अपनों में  बेगानो से क्या शिकवा करें अब  अपने ही साथ नहीं हमारे जब  बैठ बेगानो में तन्हा बसर करते थे  अब तो अपनों में खुद बेगाने लगते हैं  साथ ना जाने कहाँ छूट गया हमसे  अब तो बस सवालों में सहूलियत ढूंढते हैं  …

धर्मनाश

बैठे सहर से सहम कर  सोच रहे हैं अपने करम  रहना है हमें इसी जहाँ में  जहां बदलते हर कदम धर्म  भूल कर जीता है इंसान  इंसानियत का मूल धर्म  उसका धर्म है सबसे ऊँचा  पाल लिया है बस ये भ्रम  प्यार मोहब्बत और जज़्बात  नहीं है आज इनका कोई मोल  धर्म के नाम पर …

खामोशियाँ

खामोशियाँ मेरी पहचान है  कहीं दूर लफ़्ज़ों की दूकान है  पथ्थर से सर्द आज मेरे होंठ हैं  जुबां भी अब बेजान है  ये ज़िन्दगी जिस मोड़ पर है  खामोशियों में ही मेरी आवाज़ है  दफ़न है आज दर्द भी  हर मोड़ पर तेरी याद है  खामोशियाँ आज मेरा अक्स हैं  खामोशियों से ही मेरी पहचान …

कलाम को आखिरी सलाम

खुशनुमा जहाँ को जो कर गए  अवाम के पास अपना जो नाम छोड़ गए  खुदा  के उस बन्दे को सलाम  ए पी जे अब्दुल कलाम को मेरा सलाम  दुनिया में जो भारत की साख बना गए  अपने कर्मों से जो भारत का नाम कर गए  उस हस्ती को मेरा सलाम  ए पी जे अब्दुल कलाम …

डर

डर की ना कोई दवा है  ना डर का कोई इलाज यह तो सिर्फ पनपा है  अपने ही खयालो के तले डर के आगे ना हार है ना जीत  डर के सामने ना है किसीका वज़ूद  डर रहता है दिलों में छुप कर  नहीं किसी डर का कोई अंत  डर कर जीने वालों डर कर जीना …