Poem – Urdu

आईने की शर्मिंदगी

काश आइनों में हकीकत बयां होती कि इंसा को अपनी जात पता होती आइना आज खुद शर्मिन्दा है इस कदर आइना आज खुद शर्मिन्दा है इस कदर कि अपने ही जहाँ में बिखर जाता है काश आइनों में हकीकत बयां होती तो ऐ खुदा  तेरी बसाई इस जहां में नापाक लोगों की इतनी आबादी ना होती ना …

चंद शेर

अपनी बर्बादी के किस्सों को बयान नहीं करतेकि कहीं उनमें अपनी ही कमजोरी होती हैखंज़र-ऐ-दुश्मन गर कभी चल भी जाए तो क्याअपने होसलों से कामयाबी हासिल करते हैं || ना डर तू किसी से ता ज़िन्दगीफिर वो खुद खुदा क्यों ना होसच कि राह पर गर तू चलेगा दुश्मन तो क्या खुदा भी तुझसे डरेगा …

हर इंसा आज यहाँ है तन्हा

तुम भी तन्हा हो हम भी तन्हा है और नज़ारा देखो दुनिया का हर इंसा यहाँ तन्हा है हादसा है ये ज़िन्दगी का हर इंसा खुद में ही तन्हा है  मुक़द्दर देखो इस इंसा का तन्हा इसने गुजारी ज़िन्दगी तन्हा ही मिली मौत भी इसे घुमा ये तन्हा हर गली हर गुचा फिर भी इसे …

कहत नसीबा

कहत नसीबा नहीं कोई रस्ता नहीं कहीं कोई साथी तेरा दूर दूर तक देख चल तू नाप अपनी ज़िन्दगी की रहे ना है कोई राह जन्नत को ना कोई नज़र दोजख की चलना है अकेले तुझको राह अपनी ज़िन्दगी की कहत नसीबा नहीं को आसरा तेरे आब-ऐ-तल्ख़ को बहाना होगा खून-ऐ-जिगर सरे राह तकल्लुफ सहकर …

तेरी यादें

उडी जो जुल्फें तेरी मदहोश कर गईं मिली जो नज़रें तेरी गुमराह हमें कर गईं सांसों की तेरी महक हमारी तन्हाई ले गई लबों पर थिरकती मुस्कराहट हमें दिवाना कर गई ना अब दिल को चैन है ना रूह को है आराम यादें तेरी बन एक जज्बा हमारा इम्तिहान ले गई

एक वो वक़्त था

एक वो वक़्त था, एक ये वक़्त हैउस वक़्त में तुम हमारे थेइस वक़्त में हम तुम्हारे हैंवो वक़्त हमारा था, ये वक़्त तुम्हारा है वो वक़्त जो गुजर गया हैउस वक़्त में एक विश्वास थाआज वो वक़्त हैजिसमे खुद से विश्वास उठ सा गया है एक वो वक़्त था, एक ये वक़्त हैउस वक़्त …

तेरी चाहत

तेरी चाहत में ज़िन्दगी से बेज़ार हो चले तेरे चेहरे के नूर में खुद को जुदा कर चले फिर भी तेरी चाहत की खदाई ना निभा सके एक भी पल तुझे खुश ना रख सके सदमा रहेगा ता उमरा बेरूखी का जाम जब भी पीयेंगे हम आब-ऐ-तल्ख़ का तेरी चाहत को जो रुसवा किया है  …

ग़मगीन आँखे

ग़मगीन आँखों से दर्द के अफ़साने बह चलेआज हम अपनी कहानी पर रो पड़ेदर्द तो अपना होता हैफिर क्यों आब-ऐ-तल्ख़ बहादर्द तो अपना होता हैफिर क्यों अफसानो का तांता लगासोच फिर हमें यूँ बेताब कर चलीकि आब-ऐ-तल्ख़ में ज़िन्दगी बह चलीग़मगीन आँखों से दर्द के अफ़साने बह चलेआज अपनी ही कहानी पर हम रो पड़े