Poem – Urdu

कुसूर-ऐ-दिल

कुसूर क्या है दिल का कि दर्द में इस कदर डूब जाता है  जिस दिल में कभी वो बसा करते थे आज वहां तन्हाई बसर करती है शिकवा गर हम कभी करें तो क्या करें शिकवा गर हम उनसे करें तो क्या करें कि दर्द दिल में उनके भी कुछ इस कदर है सिर्फ वो …

शुक्रिया

शुक्र अदा करते हैं आपकी नजाकत का कि दिल ही दिल में मोहब्बत तो करते हैं मगर इकरार-ऐ-मोहब्बत का पैगाम  आप अपनी नज़रों से भिजवाते हैं शुक्र अदा करते हैं आपकी नज़रों का कि नज़र-ऐ-इनायत तो करती हैं हया के परदे में छुपा आपकी चाहत को एक इकरारनामा भिजवाती हैं शुक्र अदा करते हैं आपकी …

आज जाने की जिद्द ना करो

आज यूँ जाने की जिद्द ना करो कि राहे ज़िन्दगी से यूँ जुदा ना करो कल की सुबह किसने देखी है  कल तुम शायद हमें ना पहचानो कि आज जाने की यूँ जिद्द ना करो हमें अपनी जुल्फों के साए से यूँ दूर ना करो बेताब बड़ी है ज़िन्दगी आज की रात कि आज की …

बेमुरव्वत

और भी हैं दुनिया में गम फिर भी दिल तेरे गम में है डूबा और भी हैं चाहतें हमारी फिर भी हम तेरी चाहत से जुदा हैं ना जाने कौन सी कायनात में रहते हैं कि हर पल तेरे ही वजूद का एहसास है ना जाने किन पलों में खोये रहते हैं कि हर पल …

आशियाँ

तिनका तिनका जोड़ आशियाँ जो बनाया था तेरी जुल्फों के साये में जिसे सजाया था अपने खून-ऐ-जिगर से जिसे बनाया था वो आशियाँ सरे राह बेज़ार हो गया कि सरे राह तू क्या मिली आज तेरे दीदार से फिर भी ये दिल नाखुश था नज़रें तेरी उठी तो हमारी ओर पर उनका रुख हमारी ओर …

अल्फाज़

अल्फाज़ ऐसे कुछ होते हैं कि दिल को जो छू जाते हैं कुछ दिल में बस जाते हैं तो कुछ फांस बन चुभ जाते हैं अल्फाज़ ऐसे ही कुछ उन्होंने कहे कुछ ऐसे जो हमें अच्छे लगे कुछ ऐसे जो हमें चुभ गए उनकी तस्वीर तक बखेर गए पर क्या करें शिकवा हम उनसे कैसे …

बेहया आँखें

बहती हैं बेहया ये आँखें, जाने किसको याद करके जाने किसके गम में, रह गई में रुदाली बनके जाने किस गली किस चौबारे फिर उनसे रूबरू है होना आज का तो बस यही आलम है कि है रात दिन का रोना ना जाने क्यों याद में उनकी है ये दिल तडपता ना जाने क्यों याद …

बेताब

अलफ़ाज़ तेरे होंठों पर जो नहीं आतेउन अलफ़ाज़ को सुनने को बेताब हूँचाहत तेरी नज़रों में जो दिखती हैउस चाहत के इकरार को मैं बेताब हूँ तेरी जुल्फों में छुपी कायनात मेंबसने को साथ तेरे, मैं बेताब हूँसाथ तेरा गर मिले मुझे सरे राहतो मैं हर राह चलने को बेताब हूँ क़त्ल-ऐ-आम यूँ ना कर …

वो लम्हा

अनजान हम सफर सिफर का तय कर रहे थे कुछ लम्हात उनसे दूर जी रहे थे वक़्त के दरिया में हम जिंदगी जी रहे थे ना था कोई गिला ना जिंदगी से कोई शिकवा तन्हाई के आलम में हम सबर कर रहे थे कहीं बादलों से घिरे बरसात को तरस रहे थे ना वो रहे …

कुछ वो दिन थे

न जाने कहाँ वो गुम हो गई है कि जिंदगी में एक खालीपन सा लगता है  तन्हाई में उसका अक्स नज़र आता है आज हर पल उसका इन्तेज़ार सा रहता है कुछ वो दिन थे की लबों पर वो थिरकती थी आज हर लम्हा उसकी याद दिलाता है कुछ वो दिन थे की चेहरे पर …