Poems – Hindi

डियर ज़िन्दगी

डियर ज़िन्दगी तू बेशक हमें नचालेकिन कुछ गाने तो अच्छे बजाकि तरानों में तेरे हम खो जाएँबेशक हम मदहोश हो जाएँ!! ज़िंदगी बोली फिर हमसेतुम मेरी धुन पर नाचते हो कबसेगानों की तो यूँ फ़रमाइश करते होकभी उनमें डूबी धुन भी सुनते हो? इन तरानों की तुम बात भी मत करनातुमको तो बस आता है …

कभी आइये मेरे गाँव में

शोर पायल की झंकार काहाथों में खनकती चूड़ियों का साँसों में महकते गजरे का कहीं आपको ढूँढना है तो आइये कभी मेरे गाँव में  खिला बचपन जिन कलियों मेंलड़कपन बीता जिन गलियों में खेले लुकाछिपी जिन दालानों में मिले कंचे जहां खदानों से देखना है तो आइए मेरे गाँव में  वो खिलखिलाता सा सूरज वो चहचहाते से पंछीवो महकता सा बाग़ानवो गदराये …

इष्ट को नमन

ज्वाला हृदय की क्षीण ना करनाशिव के रौद्र रूप को ना भूलनादुःख किसी का क्या हारोगेनिमित बन मात्र अपना कर्म करोगेशिव ने तुमको भेजा है जग मेंदे डोर तुम्हारी कृष्ण के हाथों मेंबिन शिव बिन कृष्णउठा नहीं सकते एक छोटा कणनिमित्त हो मात्र कर्म करोअपने जीवन को सार्थक करो प्रचंड है रूप शिव काप्रखर है …

वक़्त का पहिया

याद आते हैं बचपन के वो दिनजब खेलते थे हम गलियों में उधम जब करते थे दोस्तों संग हर त्यौहार पर होता था हर्षो-उमंग  क्या दिन थे वो भी हमारे अपने कि बारिश की बूंदों में नाच उड़ते थे कलकल करते रह के पानी में कागज़ की कश्ती बना चलाया करते थे  ना जाने कहाँ खो गए हैं वो दिन ना …

कोमलाँगी

गरज बरस मेघा सी क्यों लगती हो चमक दमक बिजली सी क्यों चमकाती हो क्यों काली घटाओं सा इन लटों को घुमाती हो क्यों अपने नेत्रों से अग्निवर्षा करती हो अधर तुम्हारे पंखुड़िया से कोमल हैं जो उन अधरों से क्यों घटाओं सी गरजती हो नेत्र विशाल कर माथे पर सलवटें क्यों माश्तिष्क से विकार …

सफलता के साधक

क्या तुम सोचते हो क्या चाहते हो कभी किसी कदम पर क्या पाते हो जीवन के पथ पर किस और जाते हो हर पल जो करते हो वही पाते हो अथक प्रयन्त कभी निरर्थक नहीं होते फल की आशा से कभी स्वप्न नहीं बुनते निरंतर प्रयास ही सफलता का साधन हैं असफलता के द्वार कभी …

जीवनसंगिनी

धरा की धरोहर सा संजोया जिसे अंतर्मन में बसा आत्मा बनाया जिसे स्वयं को छोड़ अपनाया जिसे तुम्ही हो अर्धांगिनी मैंने बनाया जिसे परमात्मा के परोपकार से जो मिली धर्मात्मा के आशीर्वाद से जो मिली अग्नि के साक्ष्य में जो मिली वही हो तुम तो मेरी जीवनसंगिनी बनी कहीं तुम्हारी सफलता ही है लक्ष्य मेरा जीवन द्वंद्व तो …

अंतर्मन की ज्वाला

अंतर्मन में बसी है जो ज्वाला ढूंढ रही है बस एक मुख इतने वर्षों जो पी है हाला बन रही है अनंत दुःख नागपाश नहीं कंठ पर ऐसी जो बाँध दे इस जीवन हाला को प्रज्वलित ह्रदय में है ज्वाला ऐसी बना दे जो हाला अमृत को ज्वाला जब आती है जिव्हा पर अंगारे ही …

जीवन द्वंद्व में लीन

जीवन द्वंद्व में लीन है मानव  ढूंढ रहा जग में स्वयं को  नहीं कोई ठोर इसका ना दिखाना  दूर है छोर, ढूंढने का है दिखावा  नहीं किसी को सुध है किसी की  अपने ही जीवन में व्यस्त है हर कोई  ढूंढ रहा है हर कोई स्वयं को  छवि से भी अपनी डरता है हर कोई  …

मर्यादा में जीना सीखो

आनंदन नहीं दिखता इनको जो अफ़ज़ल पर रोए हैं राम इनको काल्पनिक दिखता बाबर इनका महकाय है रामायण इनकी है कहानी मात्र  किंतु शूर्पणखा एक किरदार है महिसासुर इनको खुद्दार दिखता दुर्गा नाम से इनका क्या पर्याय है राष्ट्र विरोधी कथनो और नारों में  दिखती इन्हें अपनी स्वतंत्रता है वन्दे मातरम के उच्च स्वर में …