कल्पना मेरी जीती है शब्दों में शब्दों से हूँ मैं खेलता कल्पना में नहीं जी सकता मैं जीता हूँ कल्पना अपनी शब्दों में जीवन कल्पना नहीं एक सच है कल्पना में जीना नहीं है मुझे शब्दों को पिरो मैं लिखता हूँ वर्णमाला से गीत बनाता हूँ शब्दों में मेरे एक सच है जीती है इनमें …
कलह अंतर्मन का कहता है मेरी सुन हृदयालाप कहे तू मेरी सुन मष्तिष्क में भी मचा है कोलाहल नहीं है स्थिर जीवन, पनप रहे उग्र विचार नहीं चाहता जीवन में कोई अल्पविराम नहीं चाहता कोई जीवन में स्थिर कोलाहल किन्तु जीवन फिर भी है अस्थिरजीवन में फिर भी है एक कलह हलाहल जीवन की मैं पी चुका कोलाहल फिर भी मिटा नहीं जीवन …
विमुद्रीकरण किस प्रकार चिंता जनक है कि विमुद्रीकरण की कतार में हुई मृत्यु एक राजनितिक पहलू बन जाता है बिना किसी पुष्टिकरण है पत्राचार का एक बन जाता है इन बुद्धिजीविओं से विनती है यदि तुम चाहते हो ऐसे ही विषय तो जरा ध्यान लगाना दक्षिण में कुछ वहां भी सिधार गए है अम्मा के …
आज की समय में कौन अपना है कौन परायाकैसे पहचान करें किसमे राम किसमे रावण समायाकैसे स्वयं को कोई चैतन्य करेजब भगवान का मोल भी यहाँ पैसों में धरेनहीं मिलता बिन माया के कुछ संसार मेंबिन माया अपने भी दिखाते हैं बेग़ानो मेंकैसे करे अब स्वयं को हम चैतन्यकि अब रहते हैं रिश्तों की क़ब्र …
मैं शिव हूँ, शिव् है मुझमें ये राष्ट्र मेरा शिवाला हाँ हूँ मैं शिव और शिव है मुझमें पीता आया हूँ बरसों से मैं हाला एक युग बीत गया तपस्या में फिर भी नरसंहार हुआ है एक युग हुआ मेरे आसान को फिर भी विनाश नहीं है थमता क्या भूल गए तुम मुझको यदि पी …
मधुकर को मधु पीने सेकभी मधुमेह नहीं होतामधुर भाषा में वार्तालाप सेकभी किसी को रंज नहीं होताकभी किसी के मुख परसच बोलने से रिश्तों के मायने नहीं बदलतेबदलते हैं तो केवलमानव के विचार विस्मित होने को मधुकर को मधु पीने सेकभी मधुमेह नहीं होताकहीं कभी झुकने सेमानव का कद छोटा नहीं होताहोता है यदि कुछ …
हृदय पर तेरे शाब्दिक बाण के घाव लिए इस संसार में यूँही भटकते रहते हैं हृदय में लिए तुझसे बिछड़ने की पीड़ा आज जीवन जीने की कला सीख रहे हैं तुम मरने की क्या बात कर रहे हो यहाँ कितने हृदय में पीड़ा लिए जीते है जीवन का हलाहल पी जीते है अपनो से बिछड़ने …
कहने को बहुत कुछ थालेकिन सुनाते किसकोजिन्हें जीवन का आधार समझाउन्होंने हमें कभी ना समझा जिस दर पर आज हम हैंउस दर को खोलेगा कौनजिस राह हम चल रहे हैंउसपर राहगुज़र बनेगा कौन कहने को बहुत कुछ थाकिन्तु आज सुनेगा कौनकरने को भरोसा तो हैकिन्तु हमपर भरोसा करेगा कौन इष्ट को अपने हम पूजते हैंकिन्तु …
तू जब गुलाब सी यूँ खिलती है मैं भँवरा बन वहीं मँडराता हूँ तू जब जाम से छलकती है मैं वहीं मयखाना बसा लेता हूँ तू जब कहीं खिलखिलाती है मैं वहीं अपना घर बना लेता हूँ जीवन के लम्बे इस सफ़र में तुझे मैं हमसफ़र बनाए जाता हूँ तू भले अपना राग गाती है …
चला जा रहा अपने पथ पर अनभिज्ञ अपने ध्येय से जो मोड़ आता पथ पर चल पड़ता पथिक उस ओर विडम्बना उसकी यही थी न मिला कोई मार्गदर्शक अब तक केवल चला जा रहा था अज्ञानी एक पथभ्रष्ट सा हर पथ पर खाता ठोकर हर मोड़ पर रुकता थककर किन्तु फिर उठता चलता अज्ञानी एक …