आनंदन नहीं दिखता इनको जो अफ़ज़ल पर रोए हैं राम इनको काल्पनिक दिखता बाबर इनका महकाय है रामायण इनकी है कहानी मात्र किंतु शूर्पणखा एक किरदार है महिसासुर इनको खुद्दार दिखता दुर्गा नाम से इनका क्या पर्याय है राष्ट्र विरोधी कथनो और नारों में दिखती इन्हें अपनी स्वतंत्रता है वन्दे मातरम के उच्च स्वर में …
नैनो की भाषा ना समझ पाए ना समझ पाए उनके कुछ संकेत अधरों से वो कुछ बोल ना पाए हृदय को हमारे छू ना पाए बढ़े थे जिस डगर पर साथ उनके उसपर झुककर उन्हे संभाल ना पाए एक छोर तक साथ चले वो हमारे उसके आगे हम उन्हें थाम ना पाए कुछ भाषा ना …
फ़िज़ाओं के रूख से आज रूह मेरी काँप उठी है कि तनहाइयों के साये में मेरी ज़िंदगी बसर करती है जिनको अपना समझा था वे बेग़ाने हो गए जिनके साथ का आसरा था वही तूफ़ान में छोड़ चले गए की अब तो आलम है कुछ ऐसा कि रिश्तों से ही डर लगता है ढूँढते थे …
दम्भ प्राकृतिक है या प्रकृतिकैसे करें है कैसी यह शक्तिविचार विमर्श भी किससे करेंअपनी व्यथा कहाँ धरेंहर और यहाँ दम्भ है फैलाजीवन को क़र गया मटमैला जिससे पूछो दम्भ की औषधिजताता है वही दम्भ की विधिपंहुचा ईश्वर के भी द्वारकी प्रार्थना कर दम्भ का संहारदम्भ से भरा ईश्वर भी बोलामानव है तू बहुत ही भोला …
कहीं दिन कहीं रात की है बात कि लफ़्ज़ों से मुलाक़ात की है बात नहीं कोई शिकवा किसी लम्हे से हमें गर इस नज़्म का तकल्लुफ़ ना हो तुम्हें कि यहीं एक बात से निकलती है एक बात कहीं दिन तो कहीं रात में गुज़रती है बात लफ़्ज़ों से कहीं तो कहीं अदाओं से कही …
कोई बादर गरजे, कहीं बिजुरिया चमके जब तेरा कंगना खनके अंगना मेरा महके, चिड़िया वहां चहके जब पायल तेरी छमके झुमका तेरा मचाये शोर बिंदिया तेरी उड़ाए निंदिया अधरों पर तेरी गुलाब सी लाली नैना जैसे हो काजर से काली गजरे से तेरे उठी वो महक ह्रदय भी उससे गया चहक ना कोई बदरा ना कोई बिजुरिया …
When in life I wanted to conveyLost I was for those thoughtsWhen I wanted to say somethingLost I was for those words It was a paradigm shift for meIt was a sea of changeLost I was to learn the wayYou wanted me to convey It is my love for you todayThat holds me by the …
कहने को बहुत कुछ थालेकिन सुनाते किसकोजिन्हें जीवन का आधार समझाउन्होंने हमें कभी ना समझा जिस दर पर आज हम हैंउस दर को खोलेगा कौनजिस राह हम चल रहे हैंउसपर राहगुज़र बनेगा कौन कहने को बहुत कुछ थाकिन्तु आज सुनेगा कौनकरने को भरोसा तो हैकिन्तु हमपर भरोसा करेगा कौन इष्ट को अपने हम पूजते हैंकिन्तु …
चला जा रहा अपने पथ पर अनभिज्ञ अपने ध्येय से जो मोड़ आता पथ पर चल पड़ता पथिक उस ओर विडम्बना उसकी यही थी न मिला कोई मार्गदर्शक अब तक केवल चला जा रहा था अज्ञानी एक पथभ्रष्ट सा हर पथ पर खाता ठोकर हर मोड़ पर रुकता थककर किन्तु फिर उठता चलता अज्ञानी एक …
सूखा दरिया सूखा सागर ख़ाली आज मेरा गागर सूखे में समाया आज नगर हो गई सत्ता की चाहत उजागर बहता था पानी जिस दरिया में आज लहू से सींच रहा वो धरा को अम्बर से अंबु जो बहता था आज ताप से सेक रहा वो धारा को सूखा आज ममता का गागर सूखी हर शाख़ …