Sarcasm

बरसों से यही सब चल रहा है

यही सब चल रहा है बरसों से हो रहा सीताहरण सदियों से सभ्यता का कर रहे चीरहरण मना रहे शोक कर अपनो का मरण ना स्वयं अब जिवीत  हैं  ना जिवीत है इनमें मानवता विलास का करते है सम्भोग फैला रहे केवल दानवता यही सब चल रहा है बरसों से अम्ल बह रहा है नैनों …

क्या घर मेरा बन जाएगा शिवाला

विष से भरा है आज मेरा प्याला  जीवन मंथन की है यह हाला  कटु है आज हर एक निवाला  विष से भरा है आज मेरा प्याला  कैसा है यह द्वंद्व जीवन का हर पल है जैसे काल विषपान का  कैसा है यह पशोपेश मेरा  हर ओर दिखता मुझे विष का डेरा   ना मैं शिव हूँ ना है …

कान्हा – सुन मेरी पुकार

ना तेरी बांसुरी ना तेरा माखनआज मोहे दे दे तू अपना चक्रना है अब ये महाभारतना चाहिए मुझे अस्त्रों में महारत मत बन तू मेरा सारथीमत बना मुझे तू अर्जुनआज बन तू मेरा साथीकरने को नए जग का सृजन कलयुग के अन्धकार में आजडूब गया है मानवधर्मफ़ैल रहा अधर्म चहुँ औरनहीं दिखता मानवता का छोर …

कुछ दूर निकल आये हैं

कुछ दूर निकल आये हैं घर की खोज में  अकेले ही निकल आये हैं   एक नए घर की खोज में  साथ अब ढूंढते है तेरा घर की खोज में  एक था वो दिन जब रहते थे तेरी छाँव में  फिर दैत्यों ने किया दमन तेरी गोद में  लहू की नदियां बहाई, तेरी धरा पर  बहनो की …

नेताओं का धर्म

आज के नेताओं का धर्म क्या है  किसकी वो करते हैं पूजा  कभी हुई ऐसी जिज्ञासा  कभी उठा है कोई ऐसा प्रश्न  गौर करोगे तो जानोगे उनकी जात  राजनितिक अभिलाषा है उनका धर्म  करते हैं वो सत्ता की पूजा  नहीं पैसे से बढ़कर उनके लिए कोई दूजा  कोई बड़ा नहीं कोई छोटा नहीं  उनके लिए सर्व …

सत्ता का लालच देखो

सत्ता का लालच देखो  देखो इनकी मंशा  नहीं किसी को छोड़ा इन्होने  भारत माँ तक को है डंसा  आरक्षण पर राजनीति खेल रहे  कर रहे देश के टुकड़े  जात पात में हमको बाँट रहे  कर रहे धर्म के टुकड़े  सूखे की राजनीति खेली  खेली इन्होने लहू की होली  दम्भ के ठहाकों के बीच  कर रहे …

आरक्षण का दानव

आरक्षण की मांग पर  जल रहा,  राष्ट्र का कोना कोना  रोती बिलखती जनता को   देख रहे नेता तान अपना सीना  आरक्षण की अगन में पका रहे  राष्ट्र नेता अपनी रोटी  बन गिद्द नोच नोच खा रहे  जनता की बोटी बोटी  रगों में आज लहू नहीं  बह रही है जाति  आदमी की भूख रोटी की नहीं  हो गई है आरक्षण …