मैं भारत हूँ, सदियों से सब देख रहा हूँअपने घर आये मेहमान को सह रहा हूँ आये थे मेरे द्वार ये आश्रय लेने आज मुझे आश्रित करने को आतुर हैं जाने कहाँ से आए घर मेरा हथिया लियाकहीं तंबू में सोने वाले ने इस धरा को हथिया लियाआश्रय क्या दिया मैंने इनको ताप से बचाने …
मैं सनातन हूँ है मेरी कथा निरालीज्ञान से भरा हूँ लेकिन ख़ाली मेरी प्यालीजिसने जब चाहा मुझे निचोड़ा हैजब जिसका मन चाहा मुझे तोड़ा हैमेरे अपने बैठे दर्शक दीर्घा मेंमूक मौन से घिरे इस करतब मेंचिर निद्रा में सो गये थे अनजानेफिर आया मोदी उन्हें जगाने झँझोड़ा जब मोदी ने उनकोतानाशाह की पदवी दे दी …
Don’t look for the contendersCause there can be pretendersMany would come with a copySome with come with a coffee Better to find likeminded writersThose who would lover frittesThey would sit togetherTo weave the words & weather Poems are not for competitionThey are for mutual gratificationThe are of dropping pears of wordis not forThose who have …
हमने तो अकेलेपन में अपना जीवन पाया हैकभी धूप कभी छाँव तो कभी बरसात को अपनाया हैअपने हृदय के उद्गार को शब्दों में पिरोकरअपनी लेखनी से कविताओं में बसाया हैकभी किसी उद्गार से विवश होने की जगहउसे अपने जीवन की ढाल बनाया हैमिले राह में पथिक बहुत ऐसे भीजिन्होंने हमारे इस प्रकरण को लजाया हैफिर …
जीवन की कुछ अपनी ही गाथा है इसकी पहेलियाँ सागरमाथा है तुम चाहे जितना भी जतन करो यह कहेगा छलनी से जल भरो जीवन की डोर है भगवान के हाथों में कहते फिर भी है कि भाग्य है कर्मों में फिर क्यों गीता के अध्याय में क्यों है कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन हर समय जीवन …
राजनीति का अधर्म है यह या है अधर्म की राजनीति नैतिकता जहां लगी दांव पर व्यक्तित्व का जहां हुआ संहार आलोचना जो करनी थी नेता की कर बैठे नीतियों का मोल व्यक्ति विशेष पर करनी थी टिप्पणी कर बैठे राष्ट्र का अपमान इतना भी क्या घमंड वर्षों का इतना भी क्या दम्भ पैसों का इतना भी क्या मोह सत्ता का इतना भी क्या घमंड …
निशा के प्रथम प्रहर से प्रतिक्षित हैं किंतु निद्रा हमें अपने आलिंगन में लेती नहीं कविता की पंक्तियों में जब खोना चाहें तब कविता की कोई पंक्ति कलम पर आती नहीं किससे कहें और क्या कहें कि अब तो शब्दावली भी साथ निभाती नहीं निद्रालिंगन में जितना हम जाना चाहते हैं निद्रा हमें अपने आलिंगन …
भ्रष्ट तुम मुझे कहते हो अपनी लीला जब करते हो क्यों भूल जाते हो अपनी करनी जब भूखों को रोटी नहीं देते थे जब देश में था चोरो का राज जब कर्मचारी नहीं करते थे काज कर्जे में डूबा था हर कण देश खो रहा था प्रगति का रण भ्रष्ट तुम मुझे कहते हो आज जब …
जिंदगी कि जद्दोजहद में इस कदर उलझेकि गम-ऐ-उल्फत में लफ्ज़ बेजार हो गएमोहलत कुछ दिनों की गर मिल जाएतो आपसे हम फिर रूबरू होंगे Lost out in the world in such a fashion that the words have dried up. Apologies, but if I get time out for sometime, I would surely be back here….