कहीं तो आज किसी की याद आएगी छुपते छुपाते कहीं बात निकल आएगी कहीं फ़िज़ाएँ भी गुनगुनाएँगीं यादों की पुरानी परत फिर निकल आएगी निशाँ ज़ख़्मों के कैसे अब छुपाएँगे कि पुराने वक़्त की याद कैसे दबाएँगे दबे हुए रूह के ज़ख़्म फिर तड़पाएँगे परतों से निकल नासूर बन जाएँगे कहीं तो आज किसी की …
फ़िज़ाओं के रूख से आज रूह मेरी काँप उठी है कि तनहाइयों के साये में मेरी ज़िंदगी बसर करती है जिनको अपना समझा था वे बेग़ाने हो गए जिनके साथ का आसरा था वही तूफ़ान में छोड़ चले गए की अब तो आलम है कुछ ऐसा कि रिश्तों से ही डर लगता है ढूँढते थे …
कहीं दिन कहीं रात की है बात कि लफ़्ज़ों से मुलाक़ात की है बात नहीं कोई शिकवा किसी लम्हे से हमें गर इस नज़्म का तकल्लुफ़ ना हो तुम्हें कि यहीं एक बात से निकलती है एक बात कहीं दिन तो कहीं रात में गुज़रती है बात लफ़्ज़ों से कहीं तो कहीं अदाओं से कही …
ना हालात ना ही आसार मेरी ज़िंदगी हैकि ज़िन्दगी नहीं बनती इनसे मुक्कमलतासीर इनकी मिलती जरूर ज़िन्दगी मेंलेकिन ज़िन्दगी इनकी मोहताज़ नहीं चलें हम ज़माने के साथ कभीया कभी ज़माना चले साथ हमारेज़िन्दगी में इसका अहम इतना नहींजितना है हमारी ज़िंदगी का हमारे लिए सोचते हैं अक्सर हालात यूँ न होतेकी अभी आसार भी ऐसे …
इस दुनिया में दर्द और भी हैकहीं भीड़ में एक दर्द और भी है हर ओर मैं देखता हूँ दर्द का मंज़रकि इस दर्द में तड़पे परवाने और हैं दर्द किसका क्या है, इल्म नहीं मुझेलेकिन दिखती दुनिया दर्द से सराबोर है हर मोड़ पर सोचता हूँ मिलेगा मेहरबाँ कोईकि महकाएगा इस ज़मीं को सुर्ख …
बद्दुआ में भी तो शामिल है दुआतो क्या हुआ तुमने हमें बद्दुआ दीकहीं तुम्हारे जेहन में दुआ के वक़्तइस काफ़िर का नाम तो शुमार हुआ कि ज़िन्दगी भर की बद्दुआओं मेंइस काफ़िर का नाम लेकरअपनी इबादत में ऐ ख़ुदादेने वाला मेहरबाँ तो हुआ गर दुआओं में मेरा नाम ऐ खुदातेरे इल्म में ना आया कभीतो …