The day is lit with a torch And Sun has gone down the shade For The Violence has marred its march Blood is shattered all across Red is the color of even the moss Culling humans is in the season Death is drooling for this reason The day is lit with the torch For The …
चिंतन मनन की यह धरा थी आज इसपर भी मंथन कर दिया अनेकता में एकता की यह धरा थी आज उसको भी तुमने तोड़ दिया सागर मंथन से निकला विश पी शिव शम्भु ने जग को तारा था अब इस धरा मंथन का विश कौन शिव बन पी पाएगा उस युग में तांडव कर शिव …
यही सब चल रहा है बरसों से हो रहा सीताहरण सदियों से सभ्यता का कर रहे चीरहरण मना रहे शोक कर अपनो का मरण ना स्वयं अब जिवीत हैं ना जिवीत है इनमें मानवता विलास का करते है सम्भोग फैला रहे केवल दानवता यही सब चल रहा है बरसों से अम्ल बह रहा है नैनों …
They fill it to the hilt with rock Claiming it to be something like stock It always gives me jitters and shock As is it is for them to price the life to mock They say it as the freedom When they themselves do it seldom They call it as their right to speech When …
विष से भरा है आज मेरा प्याला जीवन मंथन की है यह हाला कटु है आज हर एक निवाला विष से भरा है आज मेरा प्याला कैसा है यह द्वंद्व जीवन का हर पल है जैसे काल विषपान का कैसा है यह पशोपेश मेरा हर ओर दिखता मुझे विष का डेरा ना मैं शिव हूँ ना है …
हर हर महादेव जय शिव शम्भो बिगड़ी बना हर वर दे हमको जिस पाताल में आज है धरा जिस पाताल में है अथाह विश भरा उस पाताल से धरा को तू निकाल एक बार फिर आज बन तू त्रिकाल हर हर महादेव जय शिव शम्भो बन त्रिकाल पाप मुक्त कर तू धरा को उठा त्रिशूल …
कुछ पंक्तियाँ भारत के पराधिन मानसिकता वाले भारत के अजनबी अंग्रेज़ी भाषा के साहित्यकारिक पत्रकारों के लिए!! छोड़ आए हम अपनी शर्मोहया करते है बस बदज़ुबानी बयाँ देश की हमें परवाह नहीं वामपंथ के हैं हम राही करते हैं बस ख़ुदपर गुमान नहीं देशभक्ति का हमपर निशान चाहते हैं बस धन धन धन सुनते हैं …
We have had it enough to face Running against time’s race When the world is moving forward We are made to march backwards The words today shout out loud Actions have diminished in the crowd What we used to feel proud about Is lost in anti-national sprout We have had it enough to face With …
आज इस धरा पर लहू के दो रंग एक चढ़ गया मातृभूमि को नमन करते और एक हो गया श्वेत मातृभूमि का करते हुए शील भंग वीर सपूत छाप रक्तिम छोड़ गया चढ़ गया माँ के चरणो भेंट श्वेत लहू धारक किंतु कर रहा लाल माँ की ही कोख लहू के दो रंग देखे मैंने …
जितना भी तुम अभ्यास कर लोभारत नहीं तुम तोड़ पाओगेप्रलय की भी शक्ति जोड़ लोबाल बाँका नहीं कर पाओगे ईश्वर ने है यह सृष्टि रचिबनाया उसने यह भारत खंडकितना भी तुम प्रयास करलोरहेगा भारत सदैव अखंड वर्षों से हुए बहुत प्रयासकिया इसने सब आत्मसातजो भी आया यहां रह गया यहीं का बनकर जितना चाहे तुम …