नेताओं का धर्म

आज के नेताओं का धर्म क्या है  किसकी वो करते हैं पूजा  कभी हुई ऐसी जिज्ञासा  कभी उठा है कोई ऐसा प्रश्न  गौर करोगे तो जानोगे उनकी जात  राजनितिक अभिलाषा है उनका धर्म  करते हैं वो सत्ता की पूजा  नहीं पैसे से बढ़कर उनके लिए कोई दूजा  कोई बड़ा नहीं कोई छोटा नहीं  उनके लिए सर्व …

सत्ता का लालच देखो

सत्ता का लालच देखो  देखो इनकी मंशा  नहीं किसी को छोड़ा इन्होने  भारत माँ तक को है डंसा  आरक्षण पर राजनीति खेल रहे  कर रहे देश के टुकड़े  जात पात में हमको बाँट रहे  कर रहे धर्म के टुकड़े  सूखे की राजनीति खेली  खेली इन्होने लहू की होली  दम्भ के ठहाकों के बीच  कर रहे …

कलम आज फिर आमादा है

कलम आज फिर आमादा है  अपना रंग कागज़ पर बिखेरने को  रोक नहीं पा रहे हम आज कलम को  जो लिख रही हमारे ख्यालों को  ना जाने क्यों हाथ भी साथ नहीं  ना जाने क्यों कर रहे ये मनमानी  आज कलम फिर आमादा है  लिखने तो आवाज़ हमारी  हर पल सोचते हैं खयालों को रोकना  …

वेदना विरह की

व्यथित आज मन है मेरा  व्यथित यही चित्त  व्यथा मस्तिस्क में रह रही  हलचल ये जीवन में मचा रही  कारक नहीं समझ में आया  किया चिंतन मनन बहुत  देवों की भी कि आराधना  “नहीं पता” है उनका भी कहना  चेष्टा थी कि तुमसे पूछूँ  संग बैठ तुम्हारे मैं सोचूं  किन्तु वृद्धि हुई पीड़ा में और भी  …

पिया मिलन

नैन ताके राह किस गुजरिया की  छोड़ मँझधार हुई मैं पिया की  नहीं मोहे अब बैर किसी से  नाहीं चाहूँ मैं देवोँ की डगरिया  पिया संग है मोहे अब जीना  पिया के लिए धड़के अब मोरा जियरा  रूठे देव तो रुठने दो उनको  मनाऊँगी उनको पिया माना है जिनको  कहे अब नैन ताके राह तिहारी  …

बिछड़ तोसे जिया नहीं जाए

बदरा छाए, नैनो में बदरा छाएआज पीह से मिलन की आस मेंनैनो में बदरा छाए, बदरा छाएआज फिर मिलन की आस में कहें तोसे कैसे पियाकहाँ कहाँ ढूंढे तुझे जिया, ढूंढे जिया……… कहूँ कैसे, थामूँ कैसे, रोकूँ कैसेनीर जो बरसे नैनो से, नैनो से नीर जो बरसेबदरा छाए तोसे मिलन की आस मेंनैना नीर बहाए …

घनघोर घटा छाई

घनघोर घटा छाई  रे, घनघोर घटा छाई  रेमेरे मीत के मिलन की बेला आई रेआई रे मिलन की बेला आई रेघनघोर घटा छाई रे – २ मन व्याकुल हो चला, मन व्याकुल हो चलाना जाने कौन चितचोर इसे मिलाजाने कौन दिशा संग ये किसके चलामन व्याकुल हो चला – २ अब कित जाऊं मैं, कि घनघोर घटा छाई …

अपनो में बेगाने

अफ़सुर्दा हुए जाते हैं अफसानों में  अजनबी आज बन बैठे हैं हम अपनों में  बेगानो से क्या शिकवा करें अब  अपने ही साथ नहीं हमारे जब  बैठ बेगानो में तन्हा बसर करते थे  अब तो अपनों में खुद बेगाने लगते हैं  साथ ना जाने कहाँ छूट गया हमसे  अब तो बस सवालों में सहूलियत ढूंढते हैं  …