आज मधुशाला में इतनी मधु नहींकि बुझ जाए जीवन की प्यासकिस डगर तू चलेगा राहीकिस राह की कैसी आसपाने को क्या पाएगा चलतेबैठ यहाँ, यहीं बनाएं एक शिवालाक्यों ढूँढू मैं कहीं कोई मधुशालाआ पीते हैं बैठ यहाँ शिवामृत का प्याला
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई बाँट चुके भगवान को धरती बांटी अम्बर बांटा अब ना बांटो इंसान को धर्म स्थानो पर लहू बहाया कर्मभूमि को तो छोड़ दो ज्ञान के पीठ में अब तुम ज्ञान का सागर मत बांटो जाट गुज्जर पाटीदार जो भी हो इसी धरा की तुम संतान हो बहुत हो चुके बंटवारे धरा के अब और …
आरक्षण की मांग पर जल रहा, राष्ट्र का कोना कोना रोती बिलखती जनता को देख रहे नेता तान अपना सीना आरक्षण की अगन में पका रहे राष्ट्र नेता अपनी रोटी बन गिद्द नोच नोच खा रहे जनता की बोटी बोटी रगों में आज लहू नहीं बह रही है जाति आदमी की भूख रोटी की नहीं हो गई है आरक्षण …
धर्मान्धता की आंधी चली उसमें बह चली राष्ट्र की अस्मिता तुम बोले मैं बड़ा, हम बोलेन हम बड़े किन्तु क्या कभी सोचा है राष्ट्र हमसे बड़ा पहले मानव ने धरा बांटी फिर बने धर्म के अनुयायी ना जाने कहाँ से पैदा हुए नेता ले आये बीच में धर्मान्धता मानव को मानव से बांटा चीर दी …
सामने मेरे इतना नीर है बुझती नहीं फिर भी मेरी प्यास है जग में बहती इतनी बयार है रुकी हुई फिर भी मेरी स्वांश है साथ मेरे अपनों की भीड़ अपार है फिर भी जीवन में एज शुन्य है चहुँ और फैला प्रकाश है फिर भी जीवन यूँ अंधकारमय है नहीं जानता जीवन की क्या …
बैठे सहर से सहम कर सोच रहे हैं अपने करम रहना है हमें इसी जहाँ में जहां बदलते हर कदम धर्म भूल कर जीता है इंसान इंसानियत का मूल धर्म उसका धर्म है सबसे ऊँचा पाल लिया है बस ये भ्रम प्यार मोहब्बत और जज़्बात नहीं है आज इनका कोई मोल धर्म के नाम पर …
Wake up to the alarm of Time We have arrived finally Though we were just around here But now we have arrived finally We had given the zero to the world But the world thought we were zero We had given economics to the world But the world thought ill of our economy We were …
आधी रात में न्यायपालिका खुली लगी न्याय की बोली जनता वहां सो रही थी खुली यहाँ न्याय की पोथी एक आतंकी को बचाने आये धर्मनिरपेक्ष नाटक रचाने कितना धन कितना परिष्श्रम वो भी एक हत्यारे बचाने यदि यही कर्म करने हैं तो खोल दो न्याय द्वार चौबीसों घंटे खोलो वो पोथी करो हर घडी हर पल …
कहते हैं वो टोपी पहनते हैं जा कर दुआ सलाम करते हैं क्या बदल सकते हैं का इतिहास क्या करा सकते हैं सच का आभास चेहरा सच का देखने को कहते हैं क्या खुद के सच से वो अवगत हैं धर्म संप्रदाय की बात करते हैं क्या अपने धर्म से परिपूर्ण हैं इफ्तार में हम नहीं …
From morning till evening We slog to make living From night to dawn We spend time Dreaming Hope is the word we rely on Time is what we con Everyday & every night We try to gather our might Still we are someone’s slave Though we try to be brave Knowing that we end in …