कविताओं की शरण

हमने तो अकेलेपन में अपना जीवन पाया हैकभी धूप कभी छाँव तो कभी बरसात को अपनाया हैअपने हृदय के उद्गार को शब्दों में पिरोकरअपनी लेखनी से कविताओं में बसाया हैकभी किसी उद्गार से विवश होने की जगहउसे अपने जीवन की ढाल बनाया हैमिले राह में पथिक बहुत ऐसे भीजिन्होंने हमारे इस प्रकरण को लजाया हैफिर …

कुपित कुटिल भगवान

जीवन की कुछ अपनी ही गाथा है इसकी पहेलियाँ सागरमाथा है तुम चाहे जितना भी जतन करो यह कहेगा छलनी से जल भरो जीवन की डोर है भगवान के हाथों में कहते फिर भी है कि भाग्य है कर्मों में फिर क्यों गीता के अध्याय में क्यों है कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन हर समय जीवन …

वक़्त का पहिया

याद आते हैं बचपन के वो दिनजब खेलते थे हम गलियों में उधम जब करते थे दोस्तों संग हर त्यौहार पर होता था हर्षो-उमंग  क्या दिन थे वो भी हमारे अपने कि बारिश की बूंदों में नाच उड़ते थे कलकल करते रह के पानी में कागज़ की कश्ती बना चलाया करते थे  ना जाने कहाँ खो गए हैं वो दिन ना …

राजनीति का अधर्म

राजनीति का अधर्म है यह या है अधर्म की राजनीति नैतिकता जहां लगी दांव पर व्यक्तित्व का जहां हुआ संहार  आलोचना जो करनी थी नेता की कर बैठे नीतियों का मोल व्यक्ति विशेष पर करनी थी टिप्पणी कर बैठे राष्ट्र का अपमान  इतना भी क्या घमंड वर्षों का इतना भी क्या दम्भ पैसों का इतना भी क्या मोह सत्ता का इतना भी क्या घमंड …

निद्रालिंगन

निशा के प्रथम प्रहर से प्रतिक्षित हैं किंतु निद्रा हमें अपने आलिंगन में लेती नहीं कविता की पंक्तियों में जब खोना चाहें तब कविता की कोई पंक्ति कलम पर आती नहीं किससे कहें और क्या कहें कि अब तो शब्दावली भी साथ निभाती नहीं निद्रालिंगन में जितना हम जाना चाहते हैं निद्रा हमें अपने आलिंगन …

पथभ्रष्ट

भ्रष्ट तुम मुझे कहते हो  अपनी लीला जब करते हो  क्यों भूल जाते हो अपनी करनी  जब भूखों को रोटी नहीं देते थे  जब देश में था चोरो का राज  जब कर्मचारी नहीं करते थे काज  कर्जे में डूबा था हर कण  देश खो रहा था प्रगति का रण  भ्रष्ट तुम मुझे कहते हो आज  जब …

क्या कहें और कैसे कहें

क्या कहें और कैसे कहें कि कहीं छुपा एक राज है कहीं ज़ुबान पर आ गया तो खुदा समझ मेरे जज़्बात हैं कहीं किसी के नूर में छुपे हुए कुछ अल्फ़ाज़ हैं कहीं हलक से सरक गए तो खुदा समझ मेरे हालत हैं कि तकल्लुफ़ ना करना मेरी रूह के दीदार का कहीं दीदार गर …

कोमलाँगी

गरज बरस मेघा सी क्यों लगती हो चमक दमक बिजली सी क्यों चमकाती हो क्यों काली घटाओं सा इन लटों को घुमाती हो क्यों अपने नेत्रों से अग्निवर्षा करती हो अधर तुम्हारे पंखुड़िया से कोमल हैं जो उन अधरों से क्यों घटाओं सी गरजती हो नेत्र विशाल कर माथे पर सलवटें क्यों माश्तिष्क से विकार …

सफलता के साधक

क्या तुम सोचते हो क्या चाहते हो कभी किसी कदम पर क्या पाते हो जीवन के पथ पर किस और जाते हो हर पल जो करते हो वही पाते हो अथक प्रयन्त कभी निरर्थक नहीं होते फल की आशा से कभी स्वप्न नहीं बुनते निरंतर प्रयास ही सफलता का साधन हैं असफलता के द्वार कभी …