जीवन से जीवन का नाता

जीवन से जीवन का है ये कैसा नाता नहीं संसार में जो इसको समझता हर पल हर क्षण लेता एक परीक्षा कैसे कोई पूरी करे जीवन की समीक्षा हर रिश्ता हर नाता बंधा अलग डोर से रिश्तों के द्वन्द में जीवन उलझता हर ओर से कैसे सुलझाए कोई रिश्तो की ये गुत्थी दर लगता है …

बिन तिहारे

बिन तिहारे ये जग सूना  बिन तिहारे ये संसार अधूरा जो मैं जग में ढूंढा किया तिहारे चरणों में जा मिला मात-पिता तुम मोरे बिन तिहारे ये संसार अधूरा जनम से चला संग तिहारे अधर खोल सीखा बोलना कैसे भूलू वो बिसरी बातें कैसे भूलू वो बिसरे दिन गोद में तिहारी निकला बालपन आँगन में …

विषधर

पिला उसे शब्दों का हलाहल  कहते हो तुम उसको विषधर कर उसपर सह्ब्दों के वार कहते हो तुम उसको विषधर नहीं उसमें उतना विष  जितना हलाहल उसने पिया कहते क्यों हो उसको विषधर क्यों पकड़ते हो उसका अधर धीरज नहीं गर तुम रखते वश में गर खुद के नहीं रह सकते तो क्यों चलते हो …

बिटिया

बिटिया जबसे तुम आयी हो जीवन में नयी खुशियाँ लायीं होपूरी की तुमने मेरी अभिलाषाभर गयी है जीवन में अब आशा तुमसे मेरा जीवन हुआ पूर्णहुआ मैं जीवन संघर्ष में उत्तीर्णआने से तुम्हारे गूंजी आँगन में किलकारीरंगीन हुई मेरे जीवन की चित्रकारी तुम हो मेरे जीवन का सारांशतुम हो मेरा अपना भाग्यांशतुम ही हो अब …