पिता कहने का अवसर दो

क्यों तू मुझे मारे, हूँ मैं तेरा ही अंश मेरे कारण ही चलते हैं ये वंश बेटी, बहन, पत्नी, माँ बन मैं रहती घर आँगन को मैं रोशन करती ना मार मुझे तू, हूँ मैं तेरा ही अंश मार मुझे ना बन तू एक कंस बन कली तेरा ही आँगन महकाऊँगी मीठी अपनी बोली तुझे …

माँ मुझे जीने दे

क्या बिगाड़ा है मैंने तेरा मैंने तो तेरी कोख है बसाई क्यूँ हूँ मैं कष्ट तेरा मैंने तो तेरी पदवी बढाई क्यूँ तू चाहे मुझे मारना क्यूँ सहूँ मैं ये प्रतारणा बन मैं तेरी परछाई जी लूंगी हंस मैं तेरे बोल सह लूंगी ना मार मुझे मेरे जनम से पहले मेरी इतनी तो तू सुन …

ज़िन्दगी ऐ ज़िन्दगी

ज़िन्दगी ऐ ज़िन्दगी ना जा हो के यूँ रुसवा हमसे ना जा साथ हमारा छोड़ के ना जा कि तेरे बिन क्या है ये जहाँ साथ मेरा छोड़ के ना जा बेरूख है ये ज़माना ना जा बेदर्द है ये समां ना जा सुख से गए हैं अश्क मेरे ना जा कि बिन तेरे लम्हात …

अंतर्मन का द्वंद्व

बिन बादल इस पहर लगी बरखा की झड़ी अंतर्मन को जाने क्या गया चीर नैनो से ढलक गया जाने क्यों नीर प्रकट कर गया जैसे वो ह्रदय की पीड जाने कौन सी गाथा जिसमें उलझा चित्त गया जिसमें जीवन का सपना मिट ना जाने कौन सी बेला है कि टूटा हर सपना भूल गया जिस …

चंद छंद – ३

चिंता की चिता में जलता है जीवन का दिया उसपर मौत को बढ़ती डगर है अंधकारमय कैसे जिए तिल तिल इस पाशविक संसार में जहां हर पल भय सताता है जीवन राह में|| —————————————————– चिता जीवन की अब बन रही चहुँ ओर नहीं मानव जीवन का कहीं कोई ठोर ठिकाना नहीं जहां रहे मानव शान्ति …

चंद छंद – २

उजड़ा अगर बसना चाहे तो उसे बसानिर्माण में अगर द्वंद्व है तो उसे जगाचाह है अगर तुझमे बसने की है आदमतो उठ और नाश की प्रवृत्ति से जा टकरा|| —————————————————— अँधेरी रात में दिवा जलाना है तो हे आदमउठ तू प्रकृति के तुफानो से लड़ जाअगर है तुझमे इतना ही दमतो उठ अपनों को साथ …

एक बार तू मुस्कुरा दे

है ग़मगीन बहुत आलम-ऐ-ज़िन्दगी फिर भी कर रहे हम खुदा कि बंदगी कि खुशियाँ वो मेरे दामन में भर दे कि मुस्कराहट वो तेरे चेहरे पर भर दे गम के इस आलम में तो हम जी लेंगे ग़मों से भरे ज़िंदगी के कसीदे भी पढ़ लेंगे कि गर तुम एक बार मुस्कुरा दो ऐ हंसीं …