धरा की धरोहर सा संजोया जिसे अंतर्मन में बसा आत्मा बनाया जिसे स्वयं को छोड़ अपनाया जिसे तुम्ही हो अर्धांगिनी मैंने बनाया जिसे परमात्मा के परोपकार से जो मिली धर्मात्मा के आशीर्वाद से जो मिली अग्नि के साक्ष्य में जो मिली वही हो तुम तो मेरी जीवनसंगिनी बनी कहीं तुम्हारी सफलता ही है लक्ष्य मेरा जीवन द्वंद्व तो …
You are the one and only With whom I am never lonely You are the one and only With whom I feel homely You make me feel loved You make me feel blessed You are the one and only one With whom I have a home Never would I defy the God Should he tell …
अंतर्मन में बसी है जो ज्वाला ढूंढ रही है बस एक मुख इतने वर्षों जो पी है हाला बन रही है अनंत दुःख नागपाश नहीं कंठ पर ऐसी जो बाँध दे इस जीवन हाला को प्रज्वलित ह्रदय में है ज्वाला ऐसी बना दे जो हाला अमृत को ज्वाला जब आती है जिव्हा पर अंगारे ही …
जीवन द्वंद्व में लीन है मानव ढूंढ रहा जग में स्वयं को नहीं कोई ठोर इसका ना दिखाना दूर है छोर, ढूंढने का है दिखावा नहीं किसी को सुध है किसी की अपने ही जीवन में व्यस्त है हर कोई ढूंढ रहा है हर कोई स्वयं को छवि से भी अपनी डरता है हर कोई …
निगाहों में तेरी ज़िंदगी अपनी ढूँढते है जीने के लिए तेरी बाहों का आसरा चाहते हैं दिन कुछ ही गुज़रे है दूर तुझसे फिर भी ना जाने एक अरसा क्यूँ बिता लगता है ज़ुस्तज़ु है मेरी या है कोई आरज़ू कि आँख भी खुले तो तेरी बाहों में और कभी मौत भी आए तो आसरा …
आनंदन नहीं दिखता इनको जो अफ़ज़ल पर रोए हैं राम इनको काल्पनिक दिखता बाबर इनका महकाय है रामायण इनकी है कहानी मात्र किंतु शूर्पणखा एक किरदार है महिसासुर इनको खुद्दार दिखता दुर्गा नाम से इनका क्या पर्याय है राष्ट्र विरोधी कथनो और नारों में दिखती इन्हें अपनी स्वतंत्रता है वन्दे मातरम के उच्च स्वर में …
नैनो की भाषा ना समझ पाए ना समझ पाए उनके कुछ संकेत अधरों से वो कुछ बोल ना पाए हृदय को हमारे छू ना पाए बढ़े थे जिस डगर पर साथ उनके उसपर झुककर उन्हे संभाल ना पाए एक छोर तक साथ चले वो हमारे उसके आगे हम उन्हें थाम ना पाए कुछ भाषा ना …
At the juncture of life With the love for my wife I face a serious situation for I has an effect on my relation I am confused to decide if My beloved wife is my life or My life is for my wife A situation is so complex that I have already stretched to max …
कहीं तो आज किसी की याद आएगी छुपते छुपाते कहीं बात निकल आएगी कहीं फ़िज़ाएँ भी गुनगुनाएँगीं यादों की पुरानी परत फिर निकल आएगी निशाँ ज़ख़्मों के कैसे अब छुपाएँगे कि पुराने वक़्त की याद कैसे दबाएँगे दबे हुए रूह के ज़ख़्म फिर तड़पाएँगे परतों से निकल नासूर बन जाएँगे कहीं तो आज किसी की …
फ़िज़ाओं के रूख से आज रूह मेरी काँप उठी है कि तनहाइयों के साये में मेरी ज़िंदगी बसर करती है जिनको अपना समझा था वे बेग़ाने हो गए जिनके साथ का आसरा था वही तूफ़ान में छोड़ चले गए की अब तो आलम है कुछ ऐसा कि रिश्तों से ही डर लगता है ढूँढते थे …