काव्य कल्पना

कल्पना की डोर थामेंशब्दों की माला पिरोयेकविता की पंक्तियों मेंकाव्य का आगमन हुआ काव्य के आगमन सेकवि की कल्पना मेंशब्दों की माला पहनेसजनी आभास हुआ सजनी के आभास सेउसके श्रृंगार मेंउसकी मधुर मुस्कान मेंनवजीवन का आरभ हुआ नवजीवन के आरम्भ सेकवि के श्रजनात्मक रूप सेनारी के श्रृंगार से काव्य की कल्पना का प्रारंभ हुआ||

ईश्वर तेरी माया

उन्मुक्त जीवन जीने की चाह में चल दिया मैं पैसा कमाने भूख प्यास सब भुला दिए मैंने चल दिया मैं ऐश्वर्य कमाने पैसे की अंधाधुंध भूख में ऐश्वर्य की अंधभक्ति में  भूल बैठा मैं अपना ध्येय खो बैठा मैं सबका श्रेय ना जाने किस पल अपनों से दूर हुआ ना जाने किस पल मैं विलीन …

शुक्रगुज़ार हैं खुदा के

जाने क्या बात हुई जब उनसे नज़रें चार हुई अजब सी बेचैनी थी दिल में जब उनसे मुलाकात हुई ना जाने क्यों दिल में कसक उठी मानो बरसों की तड़प जाग उठी ना जाने क्यों दिल उदास हुआ ना जाने क्यों ये निराश हुआ पूछा जब हमने दिल से तो कहा कुछ यूँ उसने कि …

रजनी का श्रृंगार

कारी कारी अंधियारी रात में जब उजियारा फैले चंदा का अंगना में एक बहार आए सजना को सजनी भाये चांदनी में जो रूप खिले रजनी का श्रृंगार करे सजनी अपने साजन का मनभावन जो उजियारा भरे चांदनी सजना को दिखे मनमोहक सजनी कारी कारी अंधियारी रात में जब गगन में छाए चंदा साजन भर बाँहों …

आज की शाम

आज की शाम फिर उदास है मन में आज एक प्यास है क्यों ज़िन्दगी में ये, क्योंतेरे बिन दिल उदास है ना जाना मुझे छोड़ अकेलारहना साथ मेरे तू हमेशाना तेरे बिन है ज़िन्दगी पूरीहै ये दुनिया बिन तेरे अधूरी आज की शाम फिर उदास हैदिल में दबी एक प्यास हैज़िन्दगी में अब तेरा ही …