काफिर

कौन कमबख्त कहता है तुझे काफिर गर बात मेरी करते हो ऐ जानिब तो जानो कि मैंने खुदाई को रुसवा किया है  अक्स पे मैंने खून-ऐ-रोशनाई से ज़िक्र किया है कि इबादत हम खुदा की क्या करें  जब खुदा ने ही ज़ख्म बेमिसाल दिया है कि आलम कुछ इस क़द्र है बेसब्र खुदा का ना …

जिंदगी अक्स में गर गुजरती

गर अपने होंठो पर सजाना है तो खुदा कि इबादत को सजागर कुछ गुनगुनाना है तो जिंदगी के नगमें गुनगुनाकि ये सफर नहीं किसी सिफार कि कगार काजानिब ये है अक्स तेरी ही शक्शियत काजिंदगी का मानिब समझ ऐ राहगुज़रकि राह में थक कर मंजीलें नहीं मिलतीसमझ बस इतना लीजे ऐ खुदा के बंदेकि यादों …

गर नज़रों में उनकी

गर तनहाई में खुदा का दीदार मयस्सर ना होगर जुदाई में मोहब्बत का दर्द शामिल ना होगर झुकी इन पलकों में हया का डेरा न होक्या कहूँ में ऐ मेरे मौला गर ज़िन्दगी में जूनून का असर ना होगर जुल्फों में उनकी मेरा आसरा न होगर नज़रों में उनकी मेरी तस्वीर ना होकि ये मोहब्बत …

चाहत

गर हम दिन के पहलु में बैठेंया रात के आगोश में समां जाएंशाम-इ-सनम हमें न मिल सकेगीदीदार-इ-सनम न हो सकेगागर चाहत सनम कि है दिल मेंशाम का पहलु ना छूट सकेगा

इन्तेजार-ए-सनम

नाम गर लिखा हो सनम का शाम परजा उसके आगोश में उसका दीदार करउसकी साँसों के तरन्नुम में खो करअपने इश्क का इज़हार कर गर ना हो एतबार अपने लबों पर अपनी आँखों से तू बयान कर गर गिला हो कोई तो खुदा से अर्ज़ करमिलेगा तुझे भी सनम इंतज़ार करकि है क्या मज़ा उस …

मेरा अक्स

गर खुदा ने कभी मुझसे कहा होता… रुखसत हो तू हो फारिग अपनी कलम सेमैं कहता ऐ-खुदाये कलम है मेरी ज़िन्दगी मेरी तमन्नाकि ना कर इसको जुदा तू मुझसेन कर मेरे इश्क को रुसवागर कहीं मैं हूँ कगार परतो यही है वोह मेरा अक्स….

तिरंगे कि कहानी

काफी दिनों से मन में गुबार थातिरंगे की कहानी का अम्बार थाकि सोचा बहुत कैसे कहूँलेकिन दर्द ऐसा है कब तक सहूँ हुआ कुछ यूँ कि तिरंगा मिला सपने मेंकहानी थी उसकी इतनी सर्दना थी उसमें हद्दअब कैसे सहूँ में ये दर्द तिरंगा खुश होता गरउसे शहीद पर चढ़ाया जाएउसे लाल किले कि प्राचीर पर …