खड़े सिफर की कगार पर

खड़े हैं सिफर सी जिंदगी के मोड़ परआशय विहीन राह कि खोज परदेखते कतरे ज़िन्दगी के बिखरतेमानो है कोई कश्ती तूफ़ान में डूबते उतरते है एक इशारा ये खुदा काकि ना समझ पाएंगे क्यूँ हुआ इतना फख्रहै फ़िर भी दिल में ये जज्बाकि मिलेगी राह एक आगाज़ को अपनी मुस्कराहट से क्या तुम दिला सकते …

दर्द-ऐ-दिल

कि अभी तो हुई शुरू बात दिल कि हैऔर अभी तुम जाते होकि अभी तो नासूर–ऐ–दिल को छेड़ा हैऔर तुम जाते होकि अभी तो खून–ऐ–जिगर बाकी हैऔर तुम जाते हो ऐ दोस्त जुल्म यूँ न करन हो गर हिम्मत–ऐ–नज़र छेड के दास्ताँ–ऐ–जिगर हमें यूँ बेजार न कर

गर तुम पिलाओ मदिरा

गर तू अपने होंठों से मदिरा पिलाए तो मैं पी लूँकि तेरे हाथों से में बहुत मदिरा पी चुकागर तू अपने लबों से पिलाए तो मैं पी लूँकि तेरी आखों से मैं बहुत पी चुकागर भर अधर का प्याला पिलाए तो मैं पी लूँकि तेरे केसुओं की लटों से मैं बहुत पी चुकाऐ साकी गर …

वो आए जिनका इंतज़ार था

This poem was specifically written for a very cute and fast friend of mine 🙂_________________________________________जान-ऐ-बहार के आते हीखिल पड़े हैं गुल-ऐ-गुलज़ारक्या कहेंहाल-ऐ-दिल काकि बेसब्र हुआ हर बारना चाह कर भी चाहा उनकोजिया में जानने को उनकोना जा सके कहीं दूर उनसेसमां यूँ बंधा उनके आगोश में