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ये घर ऐसा ना था

मैं भारत हूँ, सदियों से सब देख रहा हूँअपने घर आये मेहमान को सह रहा हूँ आये थे मेरे द्वार ये आश्रय लेने आज मुझे आश्रित करने को आतुर हैं जाने कहाँ से आए घर मेरा हथिया लियाकहीं तंबू में सोने वाले ने इस धरा को हथिया लियाआश्रय क्या दिया मैंने इनको ताप से बचाने …

कुपित कुटिल भगवान

जीवन की कुछ अपनी ही गाथा है इसकी पहेलियाँ सागरमाथा है तुम चाहे जितना भी जतन करो यह कहेगा छलनी से जल भरो जीवन की डोर है भगवान के हाथों में कहते फिर भी है कि भाग्य है कर्मों में फिर क्यों गीता के अध्याय में क्यों है कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन हर समय जीवन …

पथभ्रष्ट

भ्रष्ट तुम मुझे कहते हो  अपनी लीला जब करते हो  क्यों भूल जाते हो अपनी करनी  जब भूखों को रोटी नहीं देते थे  जब देश में था चोरो का राज  जब कर्मचारी नहीं करते थे काज  कर्जे में डूबा था हर कण  देश खो रहा था प्रगति का रण  भ्रष्ट तुम मुझे कहते हो आज  जब …