अहज़ान-ऐ-इश्क

इश्क की इबादत में हमने दुनिया छोड़ी
इश्क  के लम्हों से हमने जिंदगी जोड़ी
फिर आज इश्क एक बोझ क्यों है
क्यों इश्क आज दर्द का दरिया है

लम्हात जो उनसे दूर गुजरेंगे
वो लम्हात मौत के साये से क्यों हैं
जिंदगी जिसपर नाम उनका लिखा था
आज फिर वो एक कोरा कागज़ क्यों है

अफ़साना बनी जो मेरी मोहब्बत
तो अफसुर्दा मेरा दिल आज क्यों है
परवान ना चडी जो मोहब्बत मेरी
तो अब्सार मेरे ग़मगीन क्यों नहीं

इबादत मेरी अमलन न हुई
अब्तर मेरा जहाँ गर हुआ
तो अब्द मैं अस्काम का क्यों न हुआ
असीर मैं गम-ओ-उल्फत का क्यों ना हुआ

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