दौर-ऐ-रुसवाई

खून-ऐ-जिगर से आह निकली है तेरी
कि एक आस में डूबी जिंदगी है तेरी
इबादत-ऐ-खुदा से कर तू राहगुज़र
कि मंजिल तन्हाई की तुझे ना मिले कभी

आब-ऐ-तल्ख़ में डूब ना सुना तू नगमें
कि हमने जिंदगी में और भी गम देखे हैं
शिद्दत से तेरी आरज़ू लिए बैठे थे हम
कि तेरी जुदाई का गम और भी है

हर्फ़-ओ-लफ़्ज़ों में बयाँ नहीं करते गर हम
तो मोहब्बत को हमारी यूँ रुसवा ना कर
ज़िंदगी तेरी अभी बाकी है और ऐ हुस्न-ऐ-जाना
राह  में औरकहीं तक्काल्लुफ़ ना कर

पैगाम गर देना है तो हो तू रूबर जान-ऐ-नशीं
किसी और के लफ़्ज़ों में तकलीफ बयाँ ना कर
नशेमंद तू भी है, नशेमंद हम भी यहाँ
किसी और से कह कर हमें बेपर्दा यूँ ना कर

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