ना जाने क्यों

जब कभी सोचता हूँ में तुम्हारे बारे में

बस खो सा जाता हूँ तुम्हरे ही ख्यालों में
ना जाने क्यूँ फिर ख़्वाबों में तुम हो होती हो
ना जाने क्यों लबों पे तुम्हारा ही नाम होता है
कि आज ना तुम हो ना ही तुम्हारा पैगाम 
फिर भी क्यों आब-ऐ-तल्ख़ पर नाम  तुम्हारा है
कुछ तो कभी हमें भी बतलाते जाना 
कि क्यों पैगाम हमारे नज़रंदाज़ करते हो
जानते हैं की ना हम तुम्हारे हैं ना हो सकेंगे
इल्म ये भी है हमें की तुम ना थी ना रहोगी कभी
फिर भी ना जाने क्यों नज़रों को एक इन्तेज़ार रहता है
ना जाने क्यों फिर भी बेजुबान दिल  इस कदर धडकता है
कि ख्वाबों ख्यालों में तुम्हारे इस कदर मशरूफ हैं
ना हमें जिंदगी का रहा कोई इल्म ना मौत का डर है
जाने क्यों अब बस तुम ही तुम नज़र आती हो
ना जाने क्यों अब लबों पर सिर्फ तुम्हारा ही नाम है

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