व्यंगात्मक

तरक्की की होड़

जब हम छोटे बच्चे थे दिल से हम सच्चे थे जात पात का नहीं था ज्ञान भेद भाव से थे अनजान जब हम छोटे बच्चे थे गली में जा खेला करते थे छत पर रात रात की बैठक थी चारपाई पर सेज सजती थी जब हम छोटे बच्चे थे मिलकर एक घर में रहते थे …

हर इंसा आज यहाँ है तन्हा

तुम भी तन्हा हो हम भी तन्हा है और नज़ारा देखो दुनिया का हर इंसा यहाँ तन्हा है हादसा है ये ज़िन्दगी का हर इंसा खुद में ही तन्हा है  मुक़द्दर देखो इस इंसा का तन्हा इसने गुजारी ज़िन्दगी तन्हा ही मिली मौत भी इसे घुमा ये तन्हा हर गली हर गुचा फिर भी इसे …

सत्ता का सच

बहुत खुश हो लिएबहुत कर किया गुणगानकुछ दिन और रुक जाओउसके बाद करना बखान पंजा कसो, कमल उठाओया हाथी की करो सवारीसाइकिल से यात्रा करोया कहो झाडू की है बारी चाहे कुछ कर लो तुम जनतानहीं बदलना इस राष्ट्र का भाग्यजिस दल में तुम झांकोगेभ्रष्टों का ही अम्बार मिलेगा आज ये नेता देते करोडोपाने को …

बगुला भगत नेता

बैठ ताल किनारे दरख़्त सहारे देख रहा मैं मछरियों का खेला कैसे अठखेलियाँ वो करती कैसे एक एक दाने पर झपटती ऊपर शाख पर बैठ बगुला भी देख रहा था सारा खेला एक दांव में गोता लगा कर चोंच में भींच लेता मछरी क्षण भर के इस हमले से सहम सी जाती मछरिया गोता लगते …

चीन की घुसपैठ

लद्दाख में चीन की घुसपैठ पर कुछ पंक्तियाँ ——————————————– चीन से आया जो घुसपैठिया उसको लद्दाख में घर बनाए दो घर जो उसने बनाया वहाँ सरकार को बात करने दो अफसरों को और फौजियों को चुप रह सहने की सलाह दो नेताओं तो इसपर राजनीति करने दो बाबुओं को इसपर थोडा सोचने दो मंत्रीजी को …

अधूरी कविता

अधूरी भ्रान्ति अधूरे क्षण अधूरे हैं जहाँ सारे प्रण अधूरी शांति अधूरे रण अधूरे हैं यहाँ सत्ता के कण राष्ट्र ये मेरा आज अधुरा है सत्ता के भूखों से भरा है जीवन यहाँ आज निर्बल है जनता की सोच भी दुर्बल है अधूरी सोच नेताओं की अधूरी होड़ प्रशाशन की अधुरा यहाँ हर कृत्य है …

राजनीति का खेला

देखो मेरे देश में राजनीति का खेला प्रजातंत्र में लगता है राजतंत्र का मेला यहाँ नहीं है कोई किसी का, ना गुरु ना चेला बस सत्ता की दौड़ की यहाँ होती हमेशा बेला जनता चाहे भूखो मरे, या जले उसकी चिता निताओं को केवल रहती है अपनी गद्दी की चिंता नहीं यहाँ आदमी आदमी को …

निष्पक्ष जांच

घोटालों के इस देश में  हर कोई करता घोटाले है जब सामने मामला आता है हम एक ही आलाप सुनते हैं इसकी निष्पक्ष जांच की जावेगी चीरहरण जब यहाँ होता अबला का सरकार फिर वही बात दोहराती जनता के आक्रोश को दबाने को  फिर वही आलाप लगाती इसकी निष्पक्ष जांच की जावेगी बलात्कार यहाँ होता …

चंद् मुक्तक – २

देश के नेता जब हो चोर तो कैसे ना हो संसद में शोर हर पल लूटें जो देश की अस्मत तो कैसे जागे नागरिकों की किस्मत ======================== जहाँ न्यायपालिका करे उनकी रक्षा जहां न्यायाधीश मांगे उनसे भीक्षा जहाँ मिले उनसे गुंडों को दीक्षा कैसे बने वहां नागरिकों की आकांक्षा ======================== जहाँ देश के नेता करें …

गरीब

दौलत से तो हूँ मैं गरीबपर हूँ खुदा के इतना करीबजानता हूँ क्या है इंसानियतपरख लेता हूँ मैं हैवानियत दो गज ज़मीन पर सोता हूँदो जून रोटी से गुज़रा करता हूँमहंगाई मुझे क्या सताएगीमैं तो अपनी ही किस्मत का मारा हूँ सर्द हवाओं के झोंकों मेंदर अपने बंद करता हूँबरसात की बूंदें ना आएयह सोच …