विगत कुछ दिनो से भारत में एक नयी लहर को उपजा है जिसे भारतीय समाचार पत्रों ने “असहिष्णुता” का नाम दिया। किंतु अजब देश के ग़ज़ब कहानी तो देखिए कि जिसने भी असहिष्णुता के बारे में कहा या लिखा उसमें से 90 प्रतिशत हिन्दू ही हैं। ये वे हिंदू हैं जो स्वयं को धर्मनिरपेक्ष मानते हैं (हैं या नहीं वे ख़ुद भी नहीं जानते)
इन हिंदू धर्मनिरपेक्ष जंतुओं की प्रजाति में से कुछ तो इस प्रकार बड़बोले बने कि उन्होंने कहीं कोई कसर ही नहीं छोड़ी और कुछ नए शब्द रचित कर दिए – हिंदू तालिबान एवं हिंदू पाकिस्तान। उनके अनुसार यदि राष्ट्र में इस परवाह से राष्ट्रवादिता एवं हिंदुत्व की धारा चली तो शीघ्रातिशीघ्र भारत में हिंदू तालिबान होगा एवं भारत स्वयं को हिंदू पाकिस्तान में बदल देगा। इतना सब होने के बाद भी वही तथाकथित धर्मनिरपेक्ष प्रजाति के जंतु आज भी भारत में जीवन निर्वाह कर रहे हैं एवं अपनी अव्यवहारिक एवं बीमार मानसिक परिस्तिथि का प्रदर्शन कर रहे हैं।
कुछ बुद्धिजीवी कहलाने वाले धर्मनिरपेक्ष जंतु तो आज के भारत को 1975 के भारत के समान मानने लगे हैं एवं उनका भारत के विकास के बारे में कुछ अलग ही कहना है। ऐसे धर्मनिरपेक्ष जंतुओं से मैंने पहले भी कुछ प्रश्न किए थे किंतु उनके पास उन प्रश्नो का कोई उत्तर नहीं है। एक ऐसे ही महानुभव से हुई वार्तालाप में मुझे सुनने को मिला की तुम राष्ट्र से दूर हो, तुम्हें यह नहीं पता कि यहाँ क्या हो रहा है। मुझे इतना तो पता है की मेरा राष्ट्र आज प्रगति के पथ पर अग्रसर है; वहाँ आज पहले से अधिक रोज़गार है; वहाँ मूलभूत सुविधाएँ पहले से अधिक हैं; आतंकवाद पहले से कम है;
किंतु तथाकथित धर्मनिरपेक्ष जंतुओं को यह नहीं दिखेगा। उन्हें तो यह रास नहीं आ रहा कि आज राष्ट्र में अशांति और अराजकता समाचारों में अधिक एवं वास्तविकता में कम है। एक अखलाख के मरने पर तो उनके आँसू नहीं थम रहे, किंतु जब एक हिंदू को मारा जाता है तब उनके मुख में जीव्हा नहीं हिलती? क्यों?? यही बुद्धिजीवी आगरा में हुए एक हिंदू सैनिक की मौत पर क्यों चुप रहे? जब उस हिंदू सैनिक ने एक लड़की की अस्मिता बचाने के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया तब क्यों देश भर में शांति बहाल रही? क्यों तब शोभा डे, अखिलेश यादव और ममता बेनर्जी चुप थे? इनकी जीव्हा क्या केवल अखलाख के मरने पर ही हिलती है? शोभा डे स्वयं को यदि धर्मनिरपेक्ष कहती हैं तो मैं इस लेख के माध्यम से उन्हें चुनौती देता हूँ की यदि वे गौ माँस का सेवन कर उसके बारे में बोलने में गौरवानित हैं, तो वहीं किसी भी एक मस्जिद में अजान के समय लाउड्स्पीकर बंद करने का साहस दिखाए। ममता बेनर्जी एवं अखिलेश यादव सहित अन्य नेताओं को भी मैं चुनौती देता हूँ कि यदि ग़ुलाम अली के कार्यक्रम के स्थगित होने से यदि वे आहत होते हैं तो उन्हें हर कलाकार के कार्यक्रम को बढ़ावा देने का साहस दिखाना चाहिए।
भारत की सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखने वाले हिंदू तालिबान नहीं हाइन, वे भारतीय हैं। आज विश्व में भारत यदि प्रगति पथ पर अग्रसर राष्ट्र के स्वरूप में देखा जाता है, तो इस राष्ट्र में रहने वाले हर नागरिक का कर्तव्य है कि अपने मानसिक विचारों को राष्ट्रवाद का चोला पहना कर प्रगतिपथ पर अग्रणी हो। विरोध केवल विरोध करने के लिए ना करे, यदि उसके पीछे उसके पास कोई ठोस कारण है तो उसे सबके सामने लाए।
यदि किसी के अनुसार कोई घटना एवाल एक घटना है तो उसे ऐसी हर घटना को एक ही स्वरूप से देखना होगा। जिस घटना की जवाबदेही प्रांतीय सरकार की हो, उसे उस प्रांत की सरकार से प्रासंगिक तौर पर पूछा जाए। केंद्र सरकार राष्ट्र में हो रही हर घटना के लिए जवाबदेह नहीं है।
अंत में एक ही बात कहूँगा – हिंदू तालिबान एवं हिंदू पाकिस्तान जैसे शब्दों का प्रयोग करने वाले बुद्धिजीवी एवं धर्मनिरपेक्ष जंतुओं, अपने उदर से ध्यान हटा सच पर केंद्रित करो। ऐसे शब्दों का परायों तुम्हारे मानसिक असंतुलन को जग जाहिर करते हैं, एवं तुम्हारे पाकिस्तान से प्रेम संबंधों को जग में प्रेषित करते हैं।