अपने घर और परिवार से दूर आज निखिल अपने अतीत के बारे में सोच रहा था| सोच रहा था अपने बचपन के बारे में, जब उसकी हर इच्छा उसके पिता उसके कहते ही पूरी करते थे| सोच रहा था उन दिनों के बारे में जब उसके पिता उसके लिए हर समय कुछ न कुछ करने के लिए तत्पर रहते थे| हालाँकि निखिल जानता है कि आज भी उसके पिता उसके लिए कुछ भी कर जाएंगे| किन्तु निखिल आज भी अपने पिता से डरता है, डरता है कि न जाने कब और कि बात पर वो नाराज़ हो जाएँ|
निखिल का किस्सा तो मात्र एक किस्सा है| जहाँ तक मेरा अपना मानना है, इस विश्व में अधिकतर बाप-बेटे का रिश्ता निखिल और उसके पिता जैसा ही है| पिता हालाँकि अपने बेटे को सबसे ज्यादा चाहता है, किन्तु उसके पैर गलत दिशा में न बढे ये सोच कर अपनी भावनाओं को व्यक्त नहीं करता| बेटा भी हालाँकि जानता है कि पिता उसे माँ से ज्यादा लाड करते हैं, लेकिन अव्यक्त भावनाओं को देखते हुए वो हर समय डरा और सहमा रहता है| ये नहीं जानता कि किस बात पे पिता नाराज़ हो जाएंगे, और किस समय उनके बीच बातों का तांता थम जाएगा|
ये बात आज तक मैं खुद नहीं समझ सका कि बाप और बेटे का रिश्ता इतनी कच्ची डोर से क्यों बंधा होता है? क्यों बाप अपने बेटे के लिए अपने प्यार को अपने गुस्से से प्रकट करता है और क्यों एक बेटा अपने पिता के लए अपनी भावनाओं को अपने डर में छिपाए रखता है| मेरा सोचना है कि एक उम्र के बाद पिता और बेटा अच्छे मित्र बन सकते हैं, किन्तु ऐसा होते हुए मैंने बहुत कम देखा है| बेटे अधिकतर अपनी माँ से ज्यादा आसानी से बात कर लेते हैं, किन्तु कुछ भावनाएं वो उन्हें भी व्यक्त नहीं कर सकते| कुछ भावनाएं ऐसी होती हैं जो एक बेटा अपने पिता कि गोद में सर रखकर या उनके सामने बैठ कर ही कह सकता है| लेकिन पिता कि गोद से बेटा एक बार बचपन का झूला झूलकर जो उतरता है, तो जीवन में उसे वो गोद दुबारा नहीं मिलती| ऐसा क्यों है?
ऐसा क्यों है कि पिता के प्यार में बेटे तो उनका गुस्सा ही दिखाई देता है? ऐसा क्यूँ है कि बेटा अपने पिता से अपनी भावनाएं व्यक्त नहीं कर सकता? ऐसा क्यूँ है कि पिता सीक बेटा हमेशा डरा और सहमा रहता है?