अतिशयोक्ति

अतिशयोक्ति एक ऐसा कड़वा विष है जिसका हम सभी जीवन में कही ना कहीं, कभी ना कभी पान करते हैं। किंतु यदि कभी जीवन में अतिशयोक्ति की अति हो जाए तो जीवन दुश्वार हो जाता है। हम यह सोचने पर विवश हो जाते हैं कि क्या इसी लिए मुझे ईश्वर ने मनुष्य योनि में जन्म दिया है?

यह अत्यंत विचारणीय प्रश्न है कि क्या अतिशयोक्ति कि कोई सीमा होती है अथवा कभी इसका परिसीमन किया जा सकता है? उत्तर सर्वदा एक ही मिलेगा – नहीं! अतिशयोक्ति की ना तो कोई सीमा होती है ना ही इसका परिसीमन सम्भव है।

अतिशयोक्ति एक मानसिक अवस्था होती है जिसमें व्यक्ति स्वयं के कुंठित विचारों कि उद्गार करता है। यह एक ऐसी अवस्था होती है जिसमें व्यक्ति या तो आत्मग्लानि, आत्मकलेश अथवा कुंठित मनोदशा में अपने मश्तिष्क पर नियंत्रण खो देता है एवं अनर्गल पप्रलाप करने लगता है। ऐसी अवस्था में व्यक्ति कदाचित हीन भावना से ग्रसित हो कर अपनी कमियों के चलते कुछ ऐसे विचार व्यक्त करने लगता है जिसमें यथार्त से भिन्न ही कुछ होता है।

अतिशयोक्ति की कई श्रेणिया भी होती हैं जिनमें व्यक्ति विशेष समय अथवा परिस्थिति को ऐसे प्रस्तुत करता है जिससे वह अपनी कुंठा का उद्गार कर सामने वाले पर दबाव बना सके। इसपर हम निम्न उदाहरण दे सकते हैं –

“मान लीजिए कि व्यक्ति विशेष को कोई कार्य नहीं आता है, एवं सहायता माँगने से उसे लगता है कि उसका मान काम हो रहा है; ऐसी परिस्थिति में व्यक्ति विशेष सामने वाले को बोलेगा कि मैं यह कार्य करना चाहता हूँ, किंतु यदि मैं अकेले करूँगा तो कदाचित समयावधि अधिक लगेगी, अतः तुम इसे करो। यहाँ इस बात पर विशेष ध्यान देना होगा कि व्यक्ति विशेष सहायता नहीं माँग रहा है, यध्यपी एन केन प्रकारें आदेश दे रहा है। इस स्तिथि में “हाँ” के अलावा यदि कोई और शब्द अथवा कथन निकला, तो उस व्यक्ति का उद्गार अवश्यंभावी है। अर्थात् क्लेश होगा ही होगा, हम कितना भी नियंत्रण करें, उद्गार की ज्वाला में हमारा धैर्य भी स्वाहा होगा ही होगा, एवं हम पर ही प्रश्न चिन्ह लग जाएगा। यह वस्तुस्तिथि इस प्रकार प्रदर्शित कर दी जाएगी कि हम दोषी बना दिए जाएँगे।”

उपरोक्त अथवा सम्भावित अतिशयोक्ति की परिस्थितियों से बचना असम्भव सा प्रतीत होता है। किंतु यदि हम इस परिस्थिति को विवेकशीलता से आकलन कर सम्भालें, तो कदाचित उपाय निकल सकता है। इसमें सर्वप्रथम धैर्य एवं तत्पश्चात् विवेकपूर्ण कार्य से ही इसका उपाय निकला जा सकता है।

यदि पाठकगण इसपर अपने विचार व्यक्त करें तो सभी को लाभ पहुँचेगा।

जय श्री राम