विमुद्रीकरण: अर्थव्यवस्था पर प्रभाव?

इस लेख को आरम्भ करते हुए मैं सबसे पहले भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी, भारतीय रिज़र्व बैंक एवं हर उस व्यक्ति विशेष एवं संस्था को बधाई देता हूँ जिसने भारत में आर्थिक प्रगति हेतु एवं भ्रष्टाचार को समाप्त करने हेतु योगदान दिया है। 
विगत दिवसों में भारत में ५०० एवं १००० के मुद्रा विनिमय को प्रतिबद्ध करने हेतु प्रधानमंत्री द्वारा की गई उद्घोषणा के बाद कई प्रत्यक्ष एवं कई परोक्ष रूपेण कटाक्ष किये गये। किसी ने इसे जान साधारण के लिए तो किसी ने अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक कहा। किन्तु कोई विश्लेषण या तर्कसंगत कथन किसी बुद्धिजीवी से नहीं आया, ऐसा लगा जैसे भारत में बुद्धिजीविओं का अकाल पड़ गया है एवं इस समय समस्त बुद्धिजीवी घर में कितना मुद्रा विनिमय पड़ा है एवं उसका क्या करना है जैसे चिंतन मनन में व्यस्त है। 
वर्तमान काल में यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं कोगी कि समक्ष रूप से कई विचारधारा इतनी सशक्त नहीं हो पाई कि माननीय प्रधानमन्त्री एवं उनकी कार्यकारिणी द्वारा किये गए सारे विश्लेषण को समझ सके। 
जहाँ तक मैंने तथाकथित बुद्धिजीविओं के विश्लेषण अथवा यूँ कहें की विश्लेषण हेतु जो प्रयत्न किये गए, उनसे जो ज्ञानार्जन किया है, उसके अनुसार इससे अधिक सही उपाय और नहीं था। 
एक विश्लेषण में तथाकथित बुद्धिजीवी पत्रकार ने प्रधानमंत्री एवं उनकी कार्यकारिणी के निर्णय एवं आर्थिक सूझबूझ पर प्रश्न उठाते हुए कहा कि यह  कदम भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अत्यंत हानिकारक होगा। महानुभाव के अनुसार यदि १०% कालाधन तो की भारतीय GDP का १% हो सकता है, यदि जला दिया जाये तो उससे भारतीय अर्थव्यवस्था खतरे में आ सकती है। किन्तु जहाँ तक मेरे अर्थव्यवस्था का ज्ञान कहता है की यदि १०% क्या १००% कालाधन भी जला दिया जाए तब भी अर्थव्यवस्था को कोई क्षति नहीं पहुंचेगी, क्योंकि वर्तमान में भी वह धन किसी तरह से राष्ट्र के अर्थव्यवस्था में नहीं गिना जा रहा। 
यदि हम मुद्रा विनिमय के आधार पर देखें तो यदि १०% या  १,५०,००० करोड रुपये का काल धन जल दिया जाए तो उससे भारतीय रिज़र्व बैंक की देनदारी उतनी काम हो जाती है, अर्थात भारतीय रिज़र्व बैंक का मुनाफा उतना बढ़ जाता है, अर्थात सरकार को मुनाफे से अधिक भागीदारी मिलती है, अर्थात अर्थकोश में अधिक धन जिसे राष्ट्रहित में खर्च किया जा सकता है, अर्थात अर्थव्यवस्था सुदृढ़ ही होती दिखाई देगी। 
यदि हम ये देखें की वही १०% यदि सरकारी कोष में जमा होते हैं तो उससे GDP में १% की बढ़ोत्तरी दिखाई देगी, अर्थात इस तरफ से भी अर्थव्यवस्था सुदृढ़ ही होती दिखाई देती है। 
यद्यपि, उस समय तक कि आम नागरिक को यह नहीं ज्ञात होता कि प्रचलन से हटाये गए मुद्रा विनिमय का क्या करना है, एवं उसे किस प्रकार वर्तमान में प्रचलित मुद्रा में बदलना है, अर्थव्यवस्था में बहुत सूक्ष्म धीमापन दिखाई देगा, जो की कुछ महीनो में ही स्वयं विकास की गति में वाष्पीकृत हो जाएगा॥ 
 

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