मौसम-ऐ-जज़्बात

मौसम  तो है वही पुराना लौट आई पुरवाई भी
ना जाने क्यूँ लगता है की हो तन्हाई और वो नहीं
सोचने पर हम मजबूर हुए, पूछा हमने खुदा से भी
समझ न सके ये दुरियाँ, यादों के साये में भी
इन्तहा लगती ये आरज़ू-ऐ-इश्क की है
कि आरज़ू की है ये जूत्सजू 
ये दिल डूबा किन गहरे जज्बातों में
कि दिल से गहरे जज़्बात हैं क्या

जुबां पे यूँ उतर दर्द सा है हैं शब्द भी कुछ सर्द से ही
आज  पुराना मौसम लौटा, लौट आई पुरवाई भी
मन में मेरे यूँ हलचल हुई, आँखें भी पथराई सी

हुआ कुछ एहसास यूँ की हो तन्हाई और वो नहीं

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