कुछ शायराना अंदाज़ – ३

हसीन  साथ हो और गर शायरी कि बात हो तो रात कुछ इस कदर गुजरती है – उनके शब्द——इरादों की कोई सीमा नहीं होती…इश्क़ की कोई तहजीब नहीं होती…बस हम कदम बन के चले संग कोई…तो कोई मंजिल कठिन नहीं होती…   हमारा  जवाब….. तहजीब न हो गर इश्क की तो उसे वासना कहते हैंइरादों … Read more

कुछ शायराना अंदाज़ – २

कुछ नायाब शायराना गुफ्तगू यूँ हुई, कि हम उसे आपसे दूर रख ना सके….. हमने लिखा – दिल को सम्हाल के रखना इस कदर कि टूटे ना वो हमारी इस कलम परशीशा नहीं है ना है वो खिलौनाअरे तेरा दिल है नहीं मिटटी का घरौंदा  उन्होंने कहा – बेहाली का आपकी सबब क्या है… यह हम नहीं … Read more

कुछ शायराना अंदाज़

एक  हसीन दोस्त कि कुछ नायाब पेशकश कुछ इस क़द्र थी – दर्द क्या होता है बताएँगे किसी रोज़,कमाल की एक ग़ज़ल सुनायेंगे किसी रोज़,उड़ने दो इन परिंदों को आज़ाद फिज़ाओ में,हमारे हुए तो लौट के आएंगे किसी रोज़…. ——————————————————————-उसपर हमारी कलम से निकले शब्द कुछ इस क़द्र हैं – सिर्फ आपकी चंद पंक्तियों ने … Read more

जिंदगी

गुनगुनाती सी कुछ यूँ आई मेरे सपनो मेंउसकी वो चहल कर गई घर इस दिल मेंसोचते हैं कि गर वो चली गयी जिंदगी सेकिन मायूस लम्हों से गुज़रेगी बेराग जिंदगी कि उसके ख्वाबों खयालों में खेली ये जिंदगीबिन उसके बीते यूँ इसके उदास पल राहे तन्हाई मेंतकल्लुफ बड़े उठाये यूँ बेपनाह मोहब्बत करकि हमें सिला … Read more

आलम-ऐ-मोहब्बत

आँखों के नशेमन से से जाम पिलाना चाहते हो होठों से अपने जो पैगाम देना चाहते होदुनिया से बचाकर जो जुल्फों में घेरना चाहते होआज हिज्र के आलम में ये रुख किये जाते हो बेसब्र क्यूँ हो इतना तन्हाई के डर सेक्यूँ थम जाते हैं कदम तुम्हारे खुदा के दर पेक्या है जो यूँ इल्तेजा … Read more

नज़र

नज़र ना झुका कि इनमें मेरा अक्स नज़र आता हैकि नज़र ना चुरा इनमें मेरा इश्क नज़र आता हैयूँ बेदर्द ना बन कि तेरी जुदाई मार ना डालेकि जुदाई के दर्द में सिरहन उभर आती है

नासूर

आज वो गुज़ारा ज़माना याद आता हैहर एक बिता पल याद आता हैजिंदगी ने दिया जो ज़ख्मवो नासूर बन उभर आता हैक्या खता थी मेरी ऐ खुदाकि मने जिंदगी से ये सिला पाया हैना कोई रंज न कोई गिला कर सकते हैंकि दिल-ऐ-नासूर इतना गहरा पाया है

तलाश-ऐ-अक्स

ज़िन्दगी में अपना अक्स खोजता हूँरात–ओ–सहर आइना देखता हूँवक्त का दरिया है की थमता नहींउम्र का आँचल है की रुकता नहीं सोचता हूँ यूँही अक्सरसुलझाता नहीं क्यों ये भंवरमझधार में ना जाने क्यूँतलाशता हूँ मैं हमसफ़रज़िन्दगी में ना जाने क्यूँखत्म सी नहीं होती तलाशकि मौत कि और बढते हुए खोजता हूँ ज़िन्दगी के माने

इल्तेजा

शाम–ऐ–गम को रंगीन करके ख्वाबों में तेरे खोए रहते हैंगर भूले से आओ सामने तुम तो ख्वाब समझ कर सोये रहते हैंजुल्फों के साए में छुपा लो तुम कि जिंदगी से रुसवा हुए जाते हैंयादों में बसा लो आज हमें कि बाँहों में बेदम हुए जाते हैं रुख ना मोडो इस कदर बेरूख होकर ऐ … Read more

पथ्थर

टूटना तो आइने की किस्मत हैआपकी खूबसूरती कि ये एक खिदमत हैसोचता हूँ इस मोड पर आकरक्यूँ ना आपसे ये सवाल करूँकि कहीं किसी मुकाम परक्या कभी किसी पथ्थर को तराशा हैयूँ देखिये कि शीशे की मूरत नहीं बनतीपथ्थर तराश इंसान इबादत करते हैं