खड़े सिफर की कगार पर

खड़े हैं सिफर सी जिंदगी के मोड़ परआशय विहीन राह कि खोज परदेखते कतरे ज़िन्दगी के बिखरतेमानो है कोई कश्ती तूफ़ान में डूबते उतरते है एक इशारा ये खुदा काकि ना समझ पाएंगे क्यूँ हुआ इतना फख्रहै फ़िर भी दिल में ये जज्बाकि मिलेगी राह एक आगाज़ को अपनी मुस्कराहट से क्या तुम दिला सकते … Read more

मरासिम से मिली एक ग़ज़ल – आखों में जो भर देती है नमीं

पेश-ऐ-खिदमत है आपके लिए उस ग़ज़ल के अल्फाज़ कि सुनकर जिसे आ जाती है आखों में नमीं। जगजीत साहब कि गई इस ग़ज़ल में डरा है तक अपना सा गहरा कि दर्द के इस दरिया को यूँ ही मापा नहीं करते – हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करतेवक्त कि शाख से लम्हे नहीं … Read more