gar nazron mein unki

गर तनहाई में खुदा का दीदार मयस्सर ना हो
गर जुदाई में मोहब्बत का दर्द शामिल ना हो
गर झुकी इन पलकों में हया का डेरा न हो
क्या कहूँ में ऐ मेरे मौला
गर ज़िन्दगी में जूनून का असर ना हो
गर जुल्फों में उनकी मेरा आसरा न हो
गर नज़रों में उनकी मेरी तस्वीर ना हो
कि ये मोहब्बत नहीं मेरा पागलपन है
गर मुझपर उनकी नज़र-ए-इनायत ना हो

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