मर्द का दर्द

एक फिल्म बनी थी “मर्द” जिसमें अमिताभ बच्चन साहब ने कहा था मर्द को दर्द नहीं होता| किन्तु आज के माहोल में जब हम नज़र उठा कर अपने चारों और देखते हैं तो ये एहसास होता है कि मर्द को ही दर्द होता है| आप ये सोचेंगे कि कैसे?? तो सोचिये कि आज के इस ज़माने में हम International Womans’ Day मानते हैं, Man’s Day नहीं :))

आज हम बात करते हैं स्त्रियों को काबिल बनाने कि, किन्तु कभी ये सोचा है कि वे खुद कितनी काबिलियत रखती हैं?

मैं आज के दौर में आदमी / मर्द के दर्द को कुछ इस तरह व्यक्त करूँगा –

बेचारा मर्द क्या करे इस ज़माने में
गर औरत पर हाथ उठाए तो जालिम
गर पिट जाए तो बुजदिल
गर औरत को गैर के साथ देख कर लड़े तो शक्की
गर देख कर भी चुप रह जाए तो बे-गैरत
गर घर से बहार रहे तो आवारा
गर घर में बैठे तो नाकारा
बच्चों को डांटे मारे तो ज़ालिम
न डाटें तो लापरवाह
गर औरत को नौकरी से रोके तो झक्की
गर औरत को नौकरी करने दे तो जोरू का गुलाम
अरे आखिर ये करे तो क्या करे
हालात यूँ कहिये कि दर्द है पर बयां नहीं कर सकता
गर बयां कर दे तो मर्द नहीं रह सकता

:))

2 thoughts on “मर्द का दर्द”

  1. Just that I had received the stuff as text on my phone and thought to share with all, though there are certain changes from the one I recd, still it is not originally mine

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  2. Hahahahah …interesting read
    I, somehow, failed to understand that why we need any kind of reservations. Whosoever is cabale will come up. And the things have changed over last decade – now man and women are prety much equal.

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