तिरंगे कि कहानी

काफी दिनों से मन में गुबार था
तिरंगे की कहानी का अम्बार था
कि सोचा बहुत कैसे कहूँ
लेकिन दर्द ऐसा है कब तक सहूँ

हुआ कुछ यूँ कि तिरंगा मिला सपने में
कहानी थी उसकी इतनी सर्द
ना थी उसमें हद्द
अब कैसे सहूँ में ये दर्द

तिरंगा खुश होता गर
उसे शहीद पर चढ़ाया जाए
उसे लाल किले कि प्राचीर पर फहराया जाए
उसे आजादी का परचम बनाया जाए

तिरंगा दुखी है क्योंकि
उसे भ्रष्ट नेताओं पर लहराया जाता है
उसे गुंडे बदमाशों कि गाडी पर पाया जाता है
उसे सरे आम बेईज्ज़त किया जाता है

कहना है तिरंगे का कुछ यूँ
कि उसे हर घर पर लहराना है
उसे हमारे दिलों में बस जाना है
उसे जात पात से परे जाना है

चाह है उसकी उस पुष्प सी
कि उस पथ पर दें उसको फहरा
मातृभूमि की सेवा में
जिस पथ चले वीर अनेक
__________________________
आखिरी कुछ पंक्तियाँ श्री माखनलाल चतुर्वेदी कि कविता – “पुष्प की अभिलाषा” से प्रेरित हैं|

2 thoughts on “तिरंगे कि कहानी”

Leave a Comment